Friday, 30 September 2011

जीवन में ढालने योग्य बात

जीवन में ढालने योग्य बात-
 " अब तो प्रभु की शरण में आ गया हूँ। सब तरफ़ से मन, बुद्धि, इन्द्रियों को समेट कर प्रभु के चरणोंमें रख देता हूँ। प्रभु के चरणों में लगा देना चाहता हूँ। मैं अब संसारके प्राणी-पदार्थों के लिये नहीं रोता। श्वास- श्वास पर प्रभु का अधिकार है। मेरा अपना कुछ नहीं है। प्रभु की अखण्ड स्मृति ही मेरी है, उसमें अपने आप को भूल जाऊँ, अपने आप को सदा के लिये खो दूँ। उनकी मधुर स्मृतियों में स्वयं को डुबो दूँ। मेरी अलग कमना-वासना-इच्छा आदि रहे ही नहीं।" -
साधकों के पत्र, पृष्ठ-१३५
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Tuesday, 6 September 2011

अपना तन-मन-धन सब भगवानके अर्पण कर दो

अपना तन-मन-धन सब भगवानके अर्पण कर दो; तुम्हारा है भी नहीं, भगवानका ही है| अपना मान बैठे हो- ममता करते हो इसीसे दुखी होते हो| ममताको सब जगहसे हटाकर केवल भगवानके चरणोंमें जोड़ दो, अपने माने हुए सब कुछ्को भगवानके अर्पण कर दो| फिर वे अपनी चीजको चाहे जैसे काममें लावें; बनावें या बिगाडें| तुम्हें उसमें व्यथा क्यों होने लगी? भगवानको समर्पण करके तुम तो निश्चिंत और आनंदमग्न हो जाओ|-
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Saturday, 3 September 2011

अपना तन-मन-धन सब ....

अपना तन-मन-धन सब भगवानके अर्पण कर दो; तुम्हारा है भी नहीं, भगवानका ही है| अपना मान बैठे हो- ममता करते हो इसीसे दुखी होते हो| ममताको सब जगहसे हटाकर केवल भगवानके चरणोंमें जोड़ दो, अपने माने हुए सब कुछ्को भगवानके अर्पण कर दो| फिर वे अपनी चीजको चाहे जैसे काममें लावें; बनावें या बिगाडें| तुम्हें उसमें व्यथा क्यों होने लगी? भगवानको समर्पण करके तुम तो निश्चिंत और आनंदमग्न हो जाओ|- 

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Ram