Monday 30 March 2020

श्रीभगवन्नाम-चिन्तन एवं नाम-महिमाके कुछ श्लोक- ५ नामसे प्रारब्धकर्म-नाश


श्रीभगवन्नाम-चिन्तन एवं नाम-महिमाके कुछ श्लोक- ५ नामसे प्रारब्धकर्म-नाश hanuman prasad poddar naam jap krishan radhe


नामसे प्रारब्धकर्म-नाश


नात: परं कर्मनिबन्धकृन्तनं मुमुक्षतां तीर्थपदानुकीर्तनात्।
न यत् पुनः कर्मसु सज्जते मनो रजस्तमोभ्यां कलिलं ततोऽन्यथा॥
(श्रीमद्भागवत)

'जो लोग इस संसार-बन्धनसे मुक्त होना चाहते हैं, उनके लिय तीर्थपाद भगवान् के  नामसे बढकर और कोई साधन ऐसा नहीं है, जो कर्मबन्धनकी जड़ काट सके; क्योंकि नामका आश्रय लेनेसे से मनुष्य का मन फिर सकाम कर्मों में आसक्त नहीं होता। भगवन्नामके अतिरिक्त दूसरे किसी प्रायश्चित का आश्रय लेनेपर मन रजोगुण और तमोगुण से ग्रस्त ही रहता है तथा उसके पापोंका भी पूर्णत: नाश नहीं हो पाता।'

यन्नामधेयं म्रियमाण आतुरः पतन् स्मरन् वा विवशो गृणन् पुमान्।
विमुक्त कर्मार्गल उत्तमां गति प्राप्नोति यक्ष्यन्ति न तं कलौ जनाः॥
(श्रीमद्भागवत)

'मरणोन्मुख रोगी तथा गिरता या किसीका स्मरण करता हुआ मनुष्य विवश होकर भी जिन भगवान्  नामका उच्चारण करके कर्मो की साँकल से छुटकारा पा उत्तम गतिको प्राप्त कर लेता है, उन्हीं भगवान्  का कलियुग के मनुष्य पूजा नहीं करेंगे (यह कितने कष्टकी बात है)।'

नाम से मुक्ति और परमधामकी प्राप्ति


इष्टापूर्तानि कर्माणि सुबहूनि कृतान्यपि।
भवे हेतूनि तान्येव हरेर्नाम तु मुक्तिदम्॥
(बौधायन संहिता)
‘इष्ट (यज्ञ-यागादि) और आपूर्त (कूप-वाटिका-निर्माण आदि) कर्म कितनी ही अधिक संख्यामें क्यों न किये जायँ, वे ही भव-बन्धनके कारण बनते हैं। परंतु श्री हरि का नाम लिया जाय तो वह भव-बन्धनसे छुटकारा दिलानेवाला होता है।'

किं करिष्यसि सांख्येन किं योगैर्नरनायक।
मुक्तिमिच्छसि राजेन्द्र कुरु गोविन्द कीर्तनम् ॥
(गरुड़ पुराण)
'नरेन्द्र ! सांख्य और योग का अनुष्ठान करके क्या करोगे ? राजेन्द्र! यदि मुक्ति चाहते हो तो गोविन्दका कीर्तन करो।'

सकृदुच्चारितं येन हरिरित्यक्षरद्वयम्।
बद्धः परिकरस्तेन मोक्षाय गमनं प्रति॥
(स्कन्द पुराण)

'जिसने एक बार भी 'हरि' इन दो अक्षरोंका उच्चारण कर लिया, उसने मोक्ष पहुँचनेके लिये कमर कस ली।'

अप्यन्यचित्तोऽशुद्धो वा यः सदा कीर्तयेद्धरिम्।
सोऽपि दोषक्षयान्मुक्तिं लभेच्चेदिपतिर्यथा॥
(ब्रह्मपुराण)

‘जो अन्यमनस्क तथा अशुद्ध रहकर भी सदा हरि-नामका कीर्तन करता है, वह भी अपने दोषोंका नाश हो जानेके कारण उसी तरह मोक्ष प्राप्त कर लेता है, जैसे चेदिराज शिशुपालने प्राप्त किया था।'

सकृदुच्चारयेद् यस्तु सिद्धांत:कार्य भूत्वा नारायणं तन्द्रितः ।
शुद्धान्त:करणो भूत्वा निर्वाणमअधिगच्छति ॥
(पद्मपुराण)
‘जो आलस्य छोड़कर एक बार नारायण-नामका उच्चारण कर लेता है, उसका अन्तःकरण शुद्ध हो जाता है और वह निर्वाण पदको प्राप्त होता है।'

यथा कथञ्चिद् यन्नाम्नि कीर्तिते वा श्रुतेऽपि वा।
पापिनोऽपि विशुद्धाः स्युः शुद्धा मोक्षमवाप्नुयुः॥
(बृहन्नारदीय०)

‘भगवान्  के नाम का जिस किसी तरह भी उच्चारण या श्रवण कर लेने पर पापी भी विशुद्ध हो जाते हैं और शुद्ध पुरुष मोक्ष की प्राप्ति कर लेते हैं।’

नव्यं नव्यं नामधेयं पुरारे- र्यद्यच्चैतद् यपीयूषपुष्टम्। ये
गायन्ति त्यक्तलज्जाः सहर्षम् जीवन्मुक्ता: संशयो नास्ति तत्र॥
(नारदपुराण)

'पुरारि (या मुरारि)-का जो नया-नया नाम है और जो इनके गुणगान रूपी अमृतसे पुष्ट हुआ है, उसका जो लोग लज्जा छोड़कर हर्षोल्लासके साथ गान करते हैं, वे जीवन्मुक्त हैं-इसमें संशय नहीं है।'

आपन्न: संसृतिं घोरां यन्नाम विवशो गृणन्।
ततः सद्यो विमुच्येत यद्विभेति स्वयं भयम्॥
(श्रीमद्भागवत)

'घोर संसार-बन्धनमें पड़ा हुआ मनुष्य विवश होकर भी यदि भगवन्नामका उच्चारण करता है तो वह तत्काल उस बन्धनसे मुक्त हो जाता है और उस पदको प्राप्त होता है, जिससे भय स्वयं भय मानता है।'

एतावतालमघनिर्हरणाय पुंसां  संकीर्तनं भगवतो गुणकर्मनाम्नाम्।
विक्रुश्य पुत्रमघवान् यदजामिलोऽपि नारायणेति नियमाण इयाय मुक्तिम्॥
(श्रीमद्भागवत)

'मनुष्य पापका नाश करनेके लिये इतने बड़े साधनकी आवश्यकता नहीं कि भगवान् के गुण, कर्म और नामोंका कीर्तन किया जाय; क्योंकि अजामिल-जैसा पापी भी मरते समय 'नारायण' शब्द से अपने पुत्र को पुकारकर मुक्ति पा गया।'

यन्नाम स्मरणादेव पापिनामपि सत्वरम्।
मुक्तिर्भवति जन्तूनां ब्रह्मादीनां सुदुर्लभा॥
(पद्मपुराण, उत्तराखण्ड)
'उन भगवान् के  नामका स्मरण करते ही पापी जीवोंको भी तत्काल ऐसी मुक्ति सुलभ हो जाती है, जो ब्रह्मा आदि देवताओं के लिये भी परम दुर्लभ है।'

जिह्वाग्रे वर्तते यस्य  हरिरित्यक्षरद्वयम्।
विष्णुलोकमवाप्नोति पुनरावृत्तिदुर्लभम्॥
(बृहन्नारदीय०)

'जिसकी जिह्वाके अग्रभागपर 'हरि' ये दो अक्षर विद्यमान हैं, वह पुनरावृत्तिरहित रहित विष्णु लोक को प्राप्त कर लेता है।'

तदेव पुण्यं परमं पवित्रं गोविन्दगेहे गमनाय पत्रम् ।
तदेव लोके सुकृतैकसत्रं यदुच्यते केशवनाममात्रम्॥
(पद्मपुराण)

'भगवान् केशवके नाममात्रका जो उच्चारण किया जाता है, वही परम पवित्र पुण्यकर्म है। वही गोविन्दगेह (गोलोक धाम)-में जाने के लिये वाहन है और वही इस लोकमें सुकृतका एकमात्र सत्र है।'

एवं संग्रहणीपुत्राभिधानव्याजतो हरिम्।
समुच्चार्यान्तकालेऽगाद् धाम तत्परमं हरेः॥
(ब्रह्मवैवर्त)
'इस प्रकार अन्तकालमें अपने अधर्मज पुत्र नामके बहाने हरिका उच्चारण करके वह श्रीहरिके परमधाममें जा पहुँचा।’

नारायणमिति व्याजादुच्चार्य कलुषाश्रयः।
अजामिलोऽप्यगाद् धाम किमुत श्रद्धया गृणन्॥
(ब्रह्मवैवर्त)

'पुत्र के बहाने नारायण-इस नामका उच्चारण करके पापका भण्डार अजामिल भी भगवद्धाममें चला गया। फिर जो श्रद्धापूर्वक भगवान्  का नाम लेता है, उसकी मुक्तिके लिये तो कहना ही क्या है।'

ये कीर्तयन्ति वरदं पद्मनाभं शङ्खाब्जचक्रशरचापगदासिहस्तम्। पद्मालयावदनपंकजषट्पदाक्षं त नूनं प्रयान्ति सदनं मधुघातिनस्ते॥
(वामनपुराण)
‘जो लोग शंख, चक्र, गदा, पद्म, बाण-धनुष और खड्ग धारण करनेवाले, लक्ष्मीके मुखारविन्दका मकरन्द पीनेके लिये भ्रमररूप नेत्रवाले वरदायक एवं श्रेष्ठ भगवान् पद्मनाभका कीर्तन करते हैं, वे अवश्य उन मधुसूदनके धाममें जाते हैं।'

वासुदेवेति मनुज उच्चार्य भवभीति ।
तन्मुक्तः पदमाप्नोति विष्णोरेव न संशयः॥
(अंगिरस पुराण)
'जो मनुष्य संसारभयसे भीत हो 'वासुदेव' इस नामका उच्चारण करता है, वह उस भयसे मुक्त हो भगवान्  विष्णु के ही पदको प्राप्त होता है-इसमें संशय नहीं है।'

नामसे सब त्रुटियोंकी पूर्णता


मन्त्रतस्तन्त्रतश्छिद्रं देशकालार्हवस्तुतः।
सर्वं करोति निश्छिद्रं नामसंकीर्तनं तव॥
(श्रीमद्भागवत)
‘मन्त्र, तन्त्र (विधि), देश, काल, पात्र और द्रव्य आदिकी दृष्टिसे भी छिद्र (न्यूनता)-को प्राप्त हुए कर्मों को आप (भगवान्)-का कीर्तन त्रुटिरहित (परिपूर्ण) कर देता है।'        

यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु।
न्यूनं सम्पूर्णतामेति सद्यो वन्दे तमच्युतम्॥
(स्कन्द पुराण )
‘जिनके स्मरण तथा नामोच्चारण से तप तथा यज्ञादि कर्मों में तत्काल न्यूनताकी पूर्ति हो जाती है, उन भगवान्  अच्युत को मैं नमस्कार करता हूँ।'


  - परम श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमान प्रसाद जी पोद्दार 
पुस्तक- श्रीभगवन्नाम-चिन्तन(कोड-338), गीताप्रेस, गोरखपुर 
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Saturday 28 March 2020

भगवान् की शरणागति


भगवान् की शरणागति -
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श्रीभगवन्नाम-चिन्तन एवं नाम-महिमाके कुछ श्लोक- 4

श्रीभगवन्नाम-चिन्तन एवं नाम-महिमाके कुछ श्लोक- 4

श्रीभगवन्नाम-चिन्तन एवं नाम-महिमाके कुछ श्लोक- 4 naam jap kirtan radha krishan hanuman prasad poddar bhaiji

सायं प्रातस्तथा कृत्वा देवदेवस्य कीर्तनम्।
सर्वपापविनिर्मुक्तः स्वर्गलोके महीयते॥

'मनुष्य सायं और प्रात:काल देवाधिदेव श्रीहरिका कीर्तन करके सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो स्वर्गलोक में सम्मानित होता है।'

नारायण नरो नराणां प्रसिद्धचौरः कथितः पृथिव्याम्।
अनेकजन्मार्जितपापसंचयं हरत्यशेषं श्रुतमात्रएव॥
(वामनपुराण)
'इस पृथ्वी पर नारायण नामक एक नर (व्यक्ति) प्रसिद्ध चोर बताया गया है, जिसका नाम एवं यश कर्ण-कुहरोंमें प्रवेश करते ही मनुष्य की अनेक जन्मोंकी कमाई हुई समस्त पाप राशि को हर लेता है।'

गोविन्देति तथा प्रोक्तं भक्त्या वा भक्तिवर्जितैः ।
दहते सर्वपापानि  युगान्ताग्निरिवोत्थितः॥
(स्कन्दपुराण)
'मनुष्य भक्ति भाव से या भक्ति रहित होकर यदि गोविन्द-नामका उच्चारण कर ले तो वह नाम सम्पूर्ण पापों को उसी प्रकार दग्ध कर देता है, जैसे युगान्तकालमें प्रज्वलित हुई प्रलयाग्नि सारे जगत को जला डालती है।'

गोविन्दनाम्ना यः कश्चिन्नरो भवति भूतले।
कीर्तन देव तस्यापि पापं याति सहस्त्रधा॥

‘भूतल पर जो कोई भी मनुष्य गोविन्द-नामसे प्रसिद्ध होता है, उसके भी उस नामका कीर्तन करनेसे ही पाप के सहस्रों टुकड़े हो जाते हैं।'

प्रमादादपि संस्पृष्टो यथानलकणो दहेत्।
तथौष्ठपुटसंस्पृष्टं हरिनाम दहेदघम्॥

‘जैसे असावधानीसे भी छू ली गयी आगकी कणिका उस अंगको जला देती है, उसी प्रकार यदि हरिनामका ओष्ठपुटसे स्पर्श हो जाय तो वह पाप को जलाकर भस्म कर देता है।'

अनिच्छयापि दहति स्पृष्टो हुतवहो यथा।
तथा दहति गोविन्दनाम व्याजादपीरितम्॥
(पद्मपुराण)

'जैसे अनिच्छा से भी स्पर्श कर लेनेपर आग शरीरको जला देती है, उसी प्रकार किसी बहानेसे भी लिया गया गोविन्द-नाम पापको दग्ध कर देता है।

नराणां विषयान्धानां ममता कुल चेतसाम् ।
एकमेव हरेर्नाम सर्व पाप विनाशनम्॥
(बृहन्नारदीय०)

'ममतासे व्याकुलचित्त हुए विषयान्ध मनुष्यों के समस्त पापोंका नाश करनेवाला एकमात्र हरिनाम ही है।'

कीर्तना देव कृष्णस्य विष्णोरमिततेजसः ।
दुरितानि विलीयन्ते तमांसीव दिनोदये॥
(पद्मपुराण)
 'अमित तेजस्वी सर्वव्यापी भगवान् श्रीकृष्ण के कीर्तन मात्र से समस्त पाप उसी तरह विलीन हो जाते हैं, जैसे दिन निकल आनेपर अन्धकार।'

साङ्केत्यं पारिहास्यं वा स्तोभं हेलनमेव वा।
वैकुण्ठनामग्रहणमशेषाघहरं विदुः॥
(श्रीमद्भागवत)
‘संकेत, परिहास, स्तोभ* या अनादरपूर्वक भी किया हुआ भगवान् विष्णु के नाम का कीर्तन सम्पूर्ण पापों का नाशक है-ऐसा महात्मा लोग जानते हैं।'
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*पुत्र आदिका गोविन्द, केशव या नारायण आदि संकेत (नाम) रखकर उसका उच्चारण करना 'साड्केत्य' है। उपहास करते हुए नाम लेना 'पारिहास्य' कहलाता है-जैसे कोई कहे,'राम-नाम' कहनेसे क्या होगा? इत्यादि। गीत आदिके स्वरको पूरा करनेके लिये किसी शब्दका (जिसका वहाँ कुछ अर्थ न हो) उच्चारण स्तोभ है, जैसे सामवेदमें 'इडा', 'होई' इत्यादि शब्द। ऐसे ही अवसर पर भगवान् का नाम लेना 'स्तोभ' है। अथवा शीत आदि से पीड़ित होनेपर बैठे-बैठे मुँहसे 'राम-राम' निकल गया-इस तरहका उच्चारण 'स्तोभ' है।


अज्ञानादथवा ज्ञानादुत्तमश्लोकनाम् यत्।
संकीर्तन में पुंसो दही दे दो यथा नः॥

'जैसे अग्नि लकड़ीको जला देती है, उसी प्रकार जाने-अनजाने लिया गया भगवान पुण्यश्लोकका नाम पुरुष पापराशिको भस्म कर देता है ।

नाम्नोऽस्य यावती शक्ति: पापनिर्हरणे हरेः।
तावत् कर्तुम न शक्नोति पातकं पातकी जनः॥
(बृहद् विष्णु पुराण)

'श्रीहरिके इस नाम पापनाश करनेकी जितनी शक्ति है, उतना पातक पातकी मनुष्य अपने जीवनमें कर ही नहीं सकता।'

श्वादोऽपि नहि शक्नोति कर्तुं पापानि मानतः ।
तावन्ति यावती शक्तिर्विष्णुनाम्नोऽशुभक्षये॥

'भगवान विष्णु के नाम में पापक्षय करनेकी जितनी शक्ति विद्यमान है, माप-तौलमें उतने पाप कुक्कुरभोजी चाण्डाल भी नहीं कर सकता।'

नामसे रोग-उत्पात-भूत-व्याधि आदिका नाश


अच्युतानन्तगोविन्द नामोच्चारणभेषजात् ।
नश्यन्ति सकला रोगाः सत्यं सत्यं वदाम्यहम्॥
‘अच्युत, अनन्त, गोविन्द-इन नामोंके का उच्चारण रूपी औषधि से समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं, यह मैं सत्य-सत्य कहता हूँ।'

न साम्ब व्याधिजं दुःखं हेयं नान्यौषधैरपि।
हरिनामौषधं पीत्वा व्याधिस्त्याज्यो न संशयः॥

‘हे साम्ब! व्याधिजनित दुःख स्वतः छूटनेयोग्य नहीं है, इसे दूसरी औषधियों द्वारा भी सहसा नहीं दूर किया जा सकता, परंतु हरिनामरूपी औषधि का पान करनेसे समस्त व्याधियोंका निवारण हो जाता है, इसमें संशय नहीं है।'

आधयो व्याधयो यस्य स्मरणान्नामकीर्तनात्।
तदैव विलयं यान्ति तमनन्तं नमाम्यहम्।।

‘जिनके स्मरण और नामकीर्तनसे सम्पूर्ण आधियाँ (मानसिक चिन्ताएँ) और व्याधियाँ तत्काल नष्ट हो जाती हैं, उन भगवान् अनन्तको मैं नमस्कार करता हूँ।'


मायाव्याधिसमाच्छन्नो राजव्याध्युपपीडितः।
नारायणेति संकीर्त्य निरातंको भवेन्नरः॥

'जो मायामय व्याधिसे आच्छादित तथा राजरोगसे पीड़ित है, वह मनुष्य नारायण-इस नामका संकीर्तन करके निर्भय हो जाता है।'

सर्वरोगोपशमनं सर्वोपद्रवनाशनम्।
शान्तिदं सर्वरिष्टानां हरेर्नामानुकीर्तनम्॥

'श्रीहरिके नामका बारम्बार कीर्तन समस्त रोगोंको शान्त करनेवाला, सारे उपद्रवोंका नाशक और सम्पूर्ण अरिष्टोंकी शान्ति करनेवाला है।'

संकीर्त्यमानो भगवाननन्तः श्रुतानुभावो व्यसनं हि पुंसाम्।
प्रविश्य चित्तं विधुनोत्यशेषं यथा तमोऽर्कोऽभ्रमिवातिवातः॥

'जिनकी महिमा सर्वत्र विश्रुत (प्रसिद्ध) है, उन भगवान् अनन्तका जब कीर्तन किया जाता है, तब वे उन कीर्तनपरायण भक्तजनोंके चित्तमें प्रविष्ट हो उनके सारे संकटको उसी प्रकार नष्ट कर देते हैं, जैसे सूर्य अन्धकारको और आँधी बादलोंको।'

आर्ता विषण्णाः शिथिलाश्च भीता घोरेषु च वर्तमानाः।
व्याधिषु संकीर्त्य नारायणशब्दमेकं विमुक्तदुःखा: सुखिनो भवन्ति॥

‘पीड़ित, विषादग्रस्त, शिथिल, भयभीत तथा भयानक रोगोंमें पड़े हए मनुष्य भी एकमात्र नारायण-नामका कीर्तन करके समस्त दःखोंसे छूटकर सुखी हो जाते हैं।’

कीर्तनादेव देवस्य विष्णोरमिततेजसः।
यक्ष राक्षस बेताल भूत प्रेत विनायकः ॥
डाकिन्यो विद्रवन्ति स्म ये तथ्य च हिंसका।
सर्वानर्थहरं तस्य नामसंकीर्तनं स्मृतम्।
नामसंकीर्तनं कृत्वा क्षुत्तृटप्रस्खलितादिषु।
वियोगं शीघ्रमाप्नोति सर्वानथैर्न संशयः॥

'अमित तेजस्वी भगवान् विष्णुके कीर्तनसे ही यक्ष, राक्षस, भूत, वेताल, प्रेत, विनायक (विघ्न), डाकिनी-गण तथा अन्य भी जो हिंसक भूतगण हैं, वे सब भाग जाते हैं। भगवान् का  नाम-संकीर्तन सम्पूर्ण अनर्थोंका नाशक कहा गया है। भूख-प्यासमें तथा गिरने, लड़खड़ाने आदिके समय भगवन्नाम-संकीर्तन करके मनुष्य सारे अनर्थों से छुटकारा  पा जाता है-इसमें संशय नहीं है।'

मोहानलोल्लसज्ज्वालाज्वलल्लोकेषु सर्वदा।
यन्नामाम्भोधरच्छायां प्रविष्टो नैव दह्यते॥

'मोहाग्निकी धधकती हुई ज्वालाओंसे सदा जलते हुए लोकोंमें जो भगवन्नामरूपी रूपी जालंधर की छाया में प्रविष्ट होता है, वह कभी नहीं दग्ध होता।'

  - परम श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमान प्रसाद जी पोद्दार 

पुस्तक- श्रीभगवन्नाम-चिन्तन(कोड-338), गीताप्रेस, गोरखपुर 

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Friday 27 March 2020

श्रीभगवन्नाम-चिन्तन एवं नाम-महिमाके कुछ श्लोक 3

श्रीभगवन्नाम-चिन्तन एवं नाम-महिमाके कुछ श्लोक- 3

श्रीभगवन्नाम-चिन्तन एवं नाम-महिमाके कुछ श्लोक Hanuman Prasad Poddar Krishan Radhe Naam Jap Kirtan

कलयुगमें नामकी विशेषता


'कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान् गुण:
कीर्तन देव कृष्णस्य मुक्तसंगः परं व्रजेत्॥
(श्रीमद्भागवत)

 'राजन्! दोषोंके भंडार कलयुग में यही एक महान् गुण है कि इस समय श्रीकृष्णका कीर्तनमात्र करनेसे से मनुष्य की सारी आसक्तियाँ छूट जाती हैं और वह परमपदको प्राप्त हो जाता है।'

यदभ्यर्च्य हरिं भक्त्या कृते क्रतुशतैरपि।
फलं प्राप्नोत्यविकलं कलौ गोविन्दकीर्तनात् ॥
(श्री विष्णु रहस्य)

‘सत्ययुगमें भक्ति-भावसे सैकड़ों यज्ञोंद्वारा भी श्रीहरिकी आराधना करके मनुष्य जिस फलको पाता हैवह सारा-का-सारा कलियुगमें भगवान् गोविंद का कीर्तन मात्र करके प्राप्त कर लेता है।'

ध्यायन् कृते यजन् यज्ञैस्त्रेतायां द्वापरेऽर्चयन्।
यदाप्नोति तदाप्नोति कलौ संकीर्त्य केशवम्॥
(विष्णु पुराण)

'सत्ययुगमें भगवान का ध्यानत्रेता यज्ञोंद्वारा यजन और द्वापर में उनका पूजन करके मनुष्य जिस फलको पाता हैउसे वह कलियुगमें केशवका का कीर्तन मात्र करके प्राप्त कर लेता है।

कृते यद्ध्यायतो विष्णुं त्रेतायां यजतो मखै:।
द्वापरे परिचर्यायां कलौ तद्धरीकीर्तनात ॥
(श्रीमद्भागवत)

 'सत्ययुगमें भगवान् विष्णु का ध्यान करनेवालेकोकोत्रेता में यज्ञों द्वारा यजन करनेवालेको तथा द्वापरमें श्रीहरिकी परिचर्या में तत्पर रहनेवालेको जो फल मिलता हैवही कलियुग में श्रीहरि का कीर्तन मात्र करने से प्राप्त हो जाता है।'

हरेर्नामैव नामैव नामैव मम जीवनम्।
कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा॥

 'श्रीहरिका नाम हीनाम हीनाम ही मेरा जीवन है। कलियुगमें इसके सिवा दूसरी कोई गति नहीं हैनहीं हैनहीं है।'

ते सभाग्या मनुष्येषु कृतार्था नृप निश्चितम्।
स्मरन्ति ये स्मारयन्ति हरेर्नाम कलौ युगे॥

 'नागेश्वर मनुष्य में वे ही सौभाग्यशाली तथा निश्चय ही कृतार्थ हैंजो कलयुगमें हरिनामका स्वयं स्मरण करते हैं और दूसरोंको भी स्मरण कराते हैं।' 

कलिकालकुसर्पस्य तीक्ष्णदंष्ट्रस्य मा भयम्।
गोविन्दनामदावेन दग्धो यास्यति भस्मताम्॥
(स्कन्दपुराण) 
'तीखी दाढ़वाले कलि कालरूपी दुष्ट सर्पका भय अब दूर हो जाना चाहियेक्योंकि गोविन्द-नामके के दावानल से दग्ध होकर वह शीघ्र ही राखका ढेर बन जायगा।’

हरिनामपरा ये च घोरे कलियुगे नराः।
त एव कृतकृत्याश्च न कलिर्बाधते हि तान्॥

घोर कलयुग में जो मनुष्य हरिनामकी शरण ले चुके हैंवे ही कृतकृत्य हैं। कलि उन्हें बाधा नहीं देता।

हरे केशव गोविन्द वासुदेव जगन्मय।
 इतीरयन्ति ये नित्यं न हि तान् बाधते कलि:॥
(बृहन्नारदीय०)

'हरे! केशव! गोविन्द ! वासुदेव! जगन्मय!-इस प्रकार जो नित्य उच्चारण करते हैंउन्हें कलियुग कष्ट नहीं देता।'

येऽहर्निशं जगद्धातुर्वासुदेवस्य कीर्तनम्।
कुर्वन्ति तान् नरव्याघ्र न कलिर्बाधते नरान्॥
(विष्णुधर्मोत्तर)

'नरश्रेष्ठ! जो लोग दिन-रात जगदाधार वासुदेव का कीर्तन करते हैंउन्हें कलियुग नहीं सताता।'

ते धन्यास्ते कृतार्थाश्च तैरेव सुकृतं कृतम्।
तैराप्तं जन्मनः प्राप्यं ये कलौ कीर्तयन्ति माम्॥

 (भगवान् कहते हैं-) 'जो कलयुग में मेरा कीर्तन करते हैंवे धन्य हैंवे कृतार्थ हैंउन्होंने ही पुण्य-कर्म किया है तथा उन्होंने ही जन्म और जीवन पानेयोग्य फल पाया है।'

सकृदुच्चारयन्त्येतद् दुर्लभं चाकृत आत्मनाम् ।
कलौ युगे हरेर्नाम ते कृतार्था न संशयः॥

जो कलयुग अपुण्यात्माओंके लिये दुर्लभ इस हरिनामका एक बार भी उच्चारण कर लेते हैंवे कृतार्थ हैं-इसमें संशय नहीं है।'

नामसे सर्व पाप-नाश


पापानलस्य दीप्तस्य मा कुर्वन्तु भयं नरा: ।
गोविन्दनाममेघौघैर्नश्यते नीर बिन्दुभिः ॥
 (गरुडपुराण)

'लोग प्रज्वलित पापाग्निसे भय न करेंक्योंकि वह गोविन्द नामरूपी मेघसमूहोंके जल- बिंदुओं से नष्ट हो जाती है।'

अवशेनापि यन्नाम्नि कीर्तिते सर्वपातकैः।
पुमान् विमुच्यते सद्यः सिंहत्रस्तैर्मृगैरिव॥

'विवश होकर भी भगवान नामका कीर्तन करनेपर मनुष्य समस्त पातकोंसे उसी प्रकार मुक्त हो जाता हैजैसे सिंहसे डरे हुए भेड़िये अपने शिकारको छोड़कर भाग जाते हैं।'

या नाम कीर्तन भक्त्या विलयन मनुत्तमम्।
मैत्रेयाशेषपापानां धातूनामिव पावकः॥

 हे मैत्रेय! भक्तिपूर्वक किया गया भगवन्नाम-कीर्तन उसी प्रकार समस्त पापों को विलीन कर देनेवाला सर्वोत्तम साधन हैजैसे धातुओं की सारे मैलको जला डालनेके लिये आग।'

  - परम श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमान प्रसाद जी पोद्दार 

पुस्तक- श्रीभगवन्नाम-चिन्तन(कोड-338), गीताप्रेस, गोरखपुर 


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