Tuesday, 4 February 2014

वशीकरण -८-


।। श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ शुक्ल, पंचमी, मंगलवार, वि० स० २०७०

वशीकरण  -८-

द्रौपदी-सत्यभामा-संवाद

  

गत ब्लॉग से आगे....द्रौपदी फिर कहने लगी-‘हे सखी ! पति का चित खीचने का एक कभी  खाली न जानेवाला एक उपाय बतलाती हूँ । इस उपाय को काम में लाने से तुम्हारे स्वामी का चित सब तरफ से हटकर केवल तुम्हारे में ही लग जायेगा ।  हे सत्यभामा ! स्त्रियों के लिए पति ही परम देवता है, पति के समान और कोई भी देवता नही है । जिसके प्रसन्न होने से स्त्रियों के सब मनोरथ सफल होते है और जिसके नाराज़ होने से सब सुख नष्ट हो जाते है ।
 
पति को प्रसन्न करके ही स्त्री, पुत्र, नाना प्रकार के सुखभोग, उत्तम शय्या, सुन्दर आसन, वस्त्र, पुष्प, गन्ध, माला, स्वर्ग, पुण्यलोक और महान कीर्ति को प्राप्त करती है । सुख सहज में नही मिलता, पतिव्रता स्त्री पहले दुःख झेलती है तब उसे सुख मिलता है । अतएवतुम भी प्रतिदिन सच्चे प्रेम से सुंदर वस्त्राभूषण, भोजन, गन्ध, पुष्प आदि प्रदान कर श्रीकृष्ण की आराधना करों । जब वे यह समझ जायेंगे की मैं सत्यभामा के लिए परम प्रिय हूँ, तब वे तुम्हारे वश में हो जायेंगे, इसमें कोई सन्देह नही है । अतएव तुम मेरे कथनानुसार उनकी सेवा करों ।

 तुम्हारे स्वामी घर के दरवाजे पर आवे और उनका शब्द तुम्हे सुनायी आवें और उनका शब्द तुम्हे सुनायी पड़े तो तुम सावधान होकर घर में खड़ी रहो और ज्यों ही वे घर में प्रवेश करे त्यों ही पाध्य,आसन यानी पैर धोने के लिए जल और बैठने के लिए आसन देकर उनकी सेवा करों ।  हे सत्यभामा ! तुम्हारे पति जब किसी काम के लिए दासी की आज्ञा दे तो तुम दासी को रोककर तुरन्त दौड़कर उस काम को अपने आप कर दो ।
 
 तुम्हारा ऐसा सद्वव्यवहार देखकर श्रीकृष्ण समझेंगे की सत्यभामा सचमुच सब प्रकार से मेरी सेवा करती है । तुम्हारे पति तुमसे जो कुछ कहे वह गुप्त रखने लायक न तो भी तुम किसी से मत कहों, क्योकि यदि तुमसे तुम्हारी सौत कभी उनसे वह बात कह देगी तो वह तुमसे नाराज हो जायेंगे । ...शेष अगले ब्लॉग में                                                     
 
श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!! 
If You Enjoyed This Post Please Take 5 Seconds To Share It.

0 comments :

Ram