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वर्षा ऋतु में वृन्दावन इसी प्रकार शोभायमान और पके हुए खजूर तथा जामुनो से भर रहा था l उसी वन में विहार करने के लिए श्याम और बलराम ग्वालबाल और गौओंके साथ प्रवेश किया l भगवान् ने देखा कि वनवासी भील और भीलनियाँ आनंदमग्न हैं l वृक्षों कि पंक्तियाँ मधुधारा उँडेल रही हैं l पर्वतों से झर-झर करते हुए झरने झर रहे हैं l जब वर्षा होने लगती, तब श्रीकृष्ण कभी किसी वृक्ष की गोद में या खोडर में जा छिपते l और कभी कंद-मूल-फल खाकर ग्वालबालों के साथ खेलते रहते l वर्षा ऋतु की सुन्दरता अपार थी l वह सभी प्राणियों को सुख पंहुचा रही थी l इसमें संदेह नहीं कि वह ऋतु गाय, बैल, बछड़े - सब-के-सब भगवान् की लीला के ही विलास थे l फिर भी उन्हें देखकर भगवान् बहुत प्रसन्न होते और बार-बार उनकी प्रशंसा करते l
इस प्रकार श्याम और बलराम बड़े आनंद से ब्रज में निवास कर रहे थे l इसी समय वर्षा बीतने पर शरद ऋतु आ गयी l अब आकाश में बादल नहीं रहे, जल निर्मल हो गया, वायु बड़ी धीमी गति से चलने लगी l शरद ऋतु में कमलों की उत्पत्ति से जलाशयों के जलने अपनी सहज स्वच्छता प्राप्त कर ली - ठीक वैसे ही जैसे योगभ्रष्ट पुरुषों का चित्त फिर से योग का सेवन करने से निर्मल हो जाता है l
शरद ऋतु ने आकाश के बादल, वर्षा-काल के बढे हुए जीव, पृथ्वी की कीचड़ और जल के मटमैलेपन को नष्ट कर दिया - जैसे भगवान् की भक्ति ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यासियों के सब प्रकार के कष्टों और अशुभों का झटपट नाश कर देती है l अब पर्वतों से कहीं-कहीं झरने झरते थे और कहीं-कहीं वे अपने कल्याणकारी जल को नहीं भी बहाते थे - जैसे ज्ञानी पुरुष समय पर अपने अमृतमय ज्ञान का दान किसी अधिकारी को कर देते हैं. और किसी-किसी को नहीं भी करते l
श्रीप्रेम-सुधा-सागर (३०)