Wednesday, 23 May 2012

ब्रह्माजी का मोह और उसका नाश





अब आगे........
              तब तक ब्रह्माजी ब्रह्मलोक से ब्रज में लौट आये ! उन्होंने देखा कि भगवान् श्रीकृष्ण ग्वालबाल और बछड़ों के साथ एक साल से पहले कि भांति ही क्रीडा कर रहे हैं ! वे सोचने लगे - 'गोकुल में जितने भी ग्वालबाल और बछड़े थे, वे तो मेरी मायामयी शय्या पर सो रहे हैं - उनको टी मैंने अपनी माया से अचेत कर दिया था, वे तब से अब  तक सचेत नहीं हुए ! तब मेरी माया से मोहित ग्वालबाल और बछड़ों के अतिरिक्त ये उतने ही दुसरे बालक तथा बछड़े कहाँ से आ गए, जो एक साल से भगवान् के साथ खेल रहे हैं? भगवान् श्रीकृष्ण की माया में तो सभी मुग्ध हो रहे हैं, परन्तु कोई भी माया-मोह भगवान् का स्पर्श नहीं कर सकता l ब्रह्माजी उन्ही भगवान् श्रीकृष्ण को अपनी माया से मोहित करने चले थे l किन्तु उनको मोहित करना तो दूर रहा, वे अजन्मा होने पर भी अपनी ही माया से अपने-आप मोहित हो गए l 
               ब्रह्माजी विचार कर ही रहे थे कि उनके देखते-देखते उसी क्षण सभी ग्वालबाल और बछड़े श्रीकृष्ण के रूप में दिखाई पड़ने लगे l ऐसा जान पड़ता था मानो वे इन दोनों के द्वारा सत्त्वगुण और रजोगुण को स्वीकार करके भक्तजनों के ह्रदय में शुद्ध लालसाएँ जगाकर उनको पूर्ण कर रहे हैं l ब्रह्माजी ने यह भी देखा कि वे सभी भूत,भविष्य और वर्तमान काल के द्वारा सीमित नहीं हैं, त्रिकालाबाधित सत्य हैं l वे सब-के-सब स्वयं प्रकाश और केवल अनंत आनंदस्वरूप हैं ल उनमें जड़ता अथवा चेतनता का भेदभाव नहीं है l 
                यह अत्यंत आश्चर्यमय दृश्य देखकर ब्रह्माजी तो चकित रह गए l उनकी ग्यारहों इन्द्रियाँ (पांच कर्मेन्द्रिय,पांच ज्ञानेन्द्रिय और एक मन) क्षुब्ध एवं स्तब्ध रह गयीं l  वे भगवान् के तेज से निस्तेज होकर मौन हो गए l भगवान् का स्वरुप तर्क से परे है l उसकी महिमा असाधारण है l वह स्वयंप्रकाश, आनंदस्वरूप और माया से अतीत है l  भगवान् श्रीकृष्ण ने ब्रह्मा के इस मोह और असमर्थता को जानकार बिना किसी प्रयास के तुरंत अपनी माया का परदा हटा  दिया l इस से ब्रह्माजी को बाह्यज्ञान हुआ l  वे मानो मरकर फिर जी उठे l तब कहीं उन्हें अपना शरीर और यह जगत दिखाई पड़ा  l तब पहले दिशाएं और उसके बाद तुरंत ही उनके सामने वृन्दावन दिखाई पड़ा l भगवान् श्रीकृष्ण की लीलाभूमि होने के कारण वृन्दावनधाम में क्रोध, तृष्णा आदि दोष प्रवेश नहीं कर सकते वहां स्वाभाव से ही मनुष्य और पशु-पक्षी भी प्रेमी मित्रों के समान हिल-मिलकर एक साथ रहते हैं l 

श्रीप्रेम-सुधा-सागर (३०)         
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Ram