Monday, 15 January 2018

पदरत्नाकर

[ ८५ ]
राग खमाचतीन ताल

छुड़ा दो विषयोंका अभिमान।
करके कृपा, कृपामय!   हमको दो यह शुभ वरदान॥
धन-जन-पद-अधिकार-देह सुख-कीरति-पूजन-मान ।
उच्च जाति-कुल, सबको समझें बिजली-चमक समान॥
सबको आदर दें, सब ही का करें सदा सम्मान।
दुखियोंमें, बस, तुम्हें देखकर, करें उन्हें सुख-दान॥
देखें नहीं उच्च महलोंको, नहिं देखें धनवान।
देखें राह पड़े दुखियोंको, अपने ही सम जान॥
आश्रयहीन, अनाथ, अपाहिज, रुग्ण, दीन, अज्ञान।
भूखों-नंगोंके हित कर दें जीवनका बलिदान॥
तप्त आँसुओंको नित पोंछें, निज सुखका कर दान।
कभी न इसका बदला चाहें, करें न कुछ अहसान॥
उनकी चीज उन्हींको दे दें, बनें न बेईमान।
इसे न समझें दान कभी भी, करें न गौरव-मान॥
सबमें तुम, सब ही तुम, सब कुछके स्वामी भगवान।

नित्य करें निश्चय अनुभव यह, ‘मैं-मेराकर दान॥

-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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Sunday, 14 January 2018

पदरत्नाकर

[ ८३ ]
राग ईमनतीन ताल

प्रभु!   तुम अपनौ बिरद सँभारौ।
हौं अति पतित, कुकर्मनिरत, मुख मधु, मन कौ बहु कारौ॥
तृस्ना-बिकल, कृपन, अति पीड़ित, काम-ताप सौं जारौ।
तदपि न छुटत विषय-सुख-आसा, करि प्रयत्न हौं हारौ॥
अब तौ निपट निरासा छाई, रह्यौ न आन सहारौ।
एक भरोसौ तव करुना कौ, मारौ चाहें तारौ॥



-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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Saturday, 13 January 2018

पदरत्नाकर

[ ८२ ]
राग विहागतीन ताल

हमें प्रभु!   दो ऐसा वरदान।
तन-मन-धन अर्पण कर सारा, करें सदा गुण-गान॥
कभी न तुमसे कुछ भी चाहें, सुख-सम्पति-सम्मान।
अतुल भोग परलोक-लोकके खींच न पायें ध्यान॥
हानि-लाभ, निन्दा-स्तुति सम हों, मान और अपमान।
सुख-दुख विजय-पराजय सम हों, बन्धन-मोक्ष समान॥
निरखें सदा माधुरी मूरति, निरुपम रसकी खान।
चरण-कमल-मकरन्द-सुधाका करें प्रेमयुत पान॥


-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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Friday, 12 January 2018

पदरत्नाकर

[ ८१ ]
राग आसावरीतीन ताल

जला दो उर मेरे विरहानल।
प्रियतम!  बिना तुम्हारे, बीते दुखमय युग-सम मेरा पल-पल॥
भोगासक्ति-कामना-ममता जग-ज्वालाएँ सब जायें जल।
मिट जाये सब दु:खयोनि आद्यन्तवन्त भोगोंका अरि-दल॥
जाग उठे दैवी गुण, हो वैराग्य-राग-रञ्जित अन्तस्तल।

मिलन तुम्हारा हो, मिल जाये मानव-जीवनका यथार्थ फल॥


-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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Thursday, 11 January 2018

पदरत्नाकर

[ ८०]
राग काफीतीन ताल

हौं हरिदास-दास कौ दास।
परम अनुग्रह करि पूरी प्रभु ने मो मन की आस॥
तन-मन, धन-जन, कछु नहिं मो पै, हौं चरननि कौ चेरौ।
बड़भागी को मो सम, पायौ पद-कमलनि महँ डेरौ॥
नहिं कछु साधन कौ बल, हौं तौ दास-दास-पद-धूल।
यहै एक अवलंब, परम बल, यहै सजीवन मूल॥
श्रीहरि के प्रिय दास, जानि मोहि निज दासनि कौ दास।
सब अपराध छमा करि राख्यौ निज चरननि के पास॥


-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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Wednesday, 10 January 2018

पदरत्नाकर

[ ७९ ]
राग जंगलाताल कहरवा

हे मेरे!  तुम, प्राण-प्राण!  तुम, जीवनके जीवन-आधान।
मैंसे रहित बना दो मुझको, हर लो अहंकार-अभिमान॥
कर दो मुझे अकिंचन पूरा, हर लो सभी लोक-परलोक।
भर जाओ उर अमित ज्योति तुम!  हर लो मिथ्या तम-आलोक॥
नटवर!  नाचो मनमाने तुम, मुझे नचाओ मन-अनुसार।
कण-कणपर हो प्रकट तुम्हारा क्रियाशील अनुपद अधिकार॥
कठपुतलीकी भाँति सर्वथा सम्मत, नीरव, वाक्य-विहीन।
नाचें सभी अङ्ग-अवयव, हो तव रुचि रम्य रज्जु-आधीन॥


-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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Friday, 5 January 2018

पदरत्नाकर

[ ७७ ]
राग भूपालीतीन ताल

मुझे प्रभु!  दो वह सुन्दर स्थान।
जहाँ गा सकूँ सरस तुम्हारा मैं अचिन्त यश-गान॥
जहाँ न हो मानापमानका तनिक भी कहीं भान।
जहाँ न हो स्तुति-निन्दा, प्रिय-अप्रियका तनिक विधान
जहाँ न हो बँटवारेको कुछ धन-धरणी-सामान।
जहाँ न हो नकली पर्दा, जो झूठ दिखावे शान॥
जहाँ सत्य नित रहे प्रकाशित, बिना बाहरी वेष।
जहाँ प्रेमका शुद्ध सुधा-रस बहता रहे अशेष॥
जहाँ सरल शुभकी धारामें सब बह जाय भदेस।
जहाँ भरा हो भगवदीय भावोंसे सारा देश॥


-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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Thursday, 4 January 2018

पदरत्नाकर

[ ७६ ]
राग आसावरीतीन ताल

करौ, प्रभु!   ऐसी कृपा महान।
छाड़ि कपट-छल भजौं निरंतर सरल हृदै तजि मान॥
सत्य, बिरति, बिग्यान, चरन-रति देहु दया करि दान।
जीवन अर्पित होय जथारथ, मिटै मोह-अग्यान
ममता रहै सदा प्रभु-पद महँ, रहै दास-अभिमान।
निज-पर, लाभ-हानिसब महँ रह चित की बृत्ति समान॥
सब महँ लखौं निरंतर तुम कौं, करौं सदा सनमान।
जीवमात्र कौ करौं न कबहूँ अहित और अपमान॥
राग-द्वेष-रहित इंद्रिय-मन सेवा करैं अमान।
परम अकिंचनसदा रहौं मैं तुमहिं परम धन जान॥


-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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Wednesday, 3 January 2018

पदरत्नाकर

[ ७५ ]
राग बहारतीन ताल

अब मोहि एक भरोसौ तेरौ।
भक्ति-भाव सौं बिरत, कलुष-रत, मोहाबृत, बिषयन कौ चेरौ॥
काम-लोभ-मद-मोह बसत निसिबासर कियें हिये महँ डेरौ।
सिरपर मीच, नीच नहिं चितवत, रहत सदा रोगनि सौं घेरौ॥
परमारथ की बात कहत नित, भोगन सौं अनुराग घनेरौ।
बार-बार अनुभवत-नहीं कोउ तो-सौ हितू, न तो-सौ नेरौ॥
तदपि बिसारि तोहि, हौं पाँवर सुमिरौं कामज सुखहि अनेरौ।
अब तौ, बस, तू ही अवलंबन, तो बिनु और न कोऊ मेरौ॥
निज पन-बिरद बिचारि, दयामय!   कृपा अहैतुक सौं नित प्रेरौ।
तू ही मोहि उबार बिषम भव-सागर सौं करि छोह बडेरौ॥


-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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Tuesday, 2 January 2018

पदरत्नाकर

[ ७४ ]
राग भूपालीतीन ताल

कैसैं बिनय सुनावौं, स्वामी! 
छिपी न कछु तुम सौं अंतर की, सब के अंतरजामी॥
सब बिधि हीन, मलिन-मति मोपै परम अनुग्रह कीन्हौ।
निज स्वभावबस मान, बिपुल जस, धन-बैभव बहु दीन्हौ॥
सब लोकनि में साधु कहायौ, भक्तराज पद पायौ।
रह्यौ बासना-बिबस निरंतर नित बिषयन प्रति धायौ॥
कनक-कामिनी-रस-बस निसि-दिन सहज कुमारगगामी।
भूल्यौ परम अनुग्रह प्रभु कौ ऐसौ नौंन-हरामी॥
हौं अति कुटिल, कृतघ्नी, कामी, नरक-कीट, अघ-भार।
निज दिसि देखि, बिरुद लखि, मोहि उबारहु परम उदार॥


-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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Monday, 1 January 2018

पदरत्नाकर

[ ७३ ]
राग पीलूतीन ताल

हमें ऐसा बल दो भगवान!
जिससे कभी समीप न आयें पाप-ताप बलवान॥
पर-सुख-हित-निमित्त निज सुखका हो स्वाभाविक त्याग।
बढ़ते रहें पवित्र भाव, हो प्रभु-पदमें अनुराग॥
भोगोंमें न रहे रञ्चकभर मेरापन अभिमान।
बनी रहे स्मृति सदा तुम्हारी पावन मधुर महान॥
लीला-गुण, शुचि नाम तुम्हारा हों जीवन-आधार।
रोम-रोमसे निकले सदा तुम्हारी जय-जयकार॥

-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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