Wednesday 19 October 2011

भगवान् में सच्चे विश्वास का स्वरूप

ईश्वर में सच्ची श्रद्धा ,सच्चा विश्वास तभी हुआ मानना  चाहिए जब उनके मंगल विधान में श्रद्धा हो ; फिर वह विधान देखने में कितना भी भयंकर हो , चाहे जितनी कठोर से कठोर विपतियों से भरा हो , चाहे अत्यंत दुखों ,अभावों, क्लेशों , अपमानो और असफलताओं से परिपूर्ण हो | वह भयंकर से भयंकर प्रतिकूलता में जहाँ दृढ निश्चिय रहता है कि 'भगवान् ने यह जो कुछ मुझे दिया है निश्चिय ही मेरे कल्याण के लिए है ' तभी सच्चे  श्रद्धा विश्वास का पता लगता है | भगवान् में श्रद्धा विश्वास रखने वाला मनुष्य बड़ी-से बड़ी काट- छांट में भी परम प्रसन्न  होता है और जैसे रोगी रोगनाश की भावना से प्रसन्न होकर डॉक्टर को धन्यवाद देता है  वैसे ही  वह विश्वासी  मनुष्य भगवान् का कृतज्ञ होकर उनका नित्य दास बन जाता है | ऊपर से देखने में बड़ी भयानक ऐसी घटनाओं से उसका विश्वास जरा भी हिलता नहीं , बल्कि बढ़ता है | यह सत्य है की ऐसा विश्वास होना हंसी -खेल नहीं है | भगवान् का भजन और भगवत -प्रार्थना करते करते अंत:करणकी मलिनता का नाश होने पर ही इस प्रकार का विश्वास उत्पन्न होता है | 
from - महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर्
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Ram