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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन शुक्ल, चतुर्थी, बुधवार,
वि० स० २०७०
सदाचार -५-
गत ब्लॉग से आगे...... हर एक रोगी हजामत बनवाने पर, छींक
आने पर, स्नान और भोजन करने पर (सब पुरुष) ब्राह्मणों को प्रणाम करे, यह प्रणाम
आयु देने वाला होता है । सूर्य के सामने बैठकर लघुशंका नही करनी चाहिये और अपने मल
को नहीं देखना चाहिये । अपने से बडो को न तो ‘तू’ कहना चाहिये और न ही उनका नाम
लेकर ही पुकारना चाहिये । अपने से छोटे या समान अवस्थावालों का नाम लेने में अथवा
उन्हें ‘तू’ कहने में दोष नही है । पापी मनुष्यों का हृदय ही उनके पाप-कर्मों को
बता देता है, जो अपने किये हुए पापों को जानबूझ कर महापुरुषो के सामने छिपाते है
वे निसन्देह पतित हो जाते है ।
अपने किये हुए पापों को मनुष्य नही
बतलाते तो क्या है, (अन्तरिक्षचारी) देवता तो उन्हें देखते ही है । अपने पापों को
गुप्त रखने से किया हुआ पप-कर्म उलटा पाप में और प्रवृत करके मनुष्य के पापों को
बढाता है और धर्म को गुप्त रखने से धर्म की वृद्धि होती है । इसलिए धर्म को सदा
गुप्त रखने का प्रयत्न करना चाहिये और पाप को कभी नही छिपाना चाहिये । किये हुए
पापों को मनुष्य भूल जाता है, परन्तु वह धर्मविरुद्ध पाप करने वाला यह नहीं जानता
की उसका वह पाप उसे वैसे ही ग्रस लेगा जैसे चन्द्रमा को राहू ग्रसे बिना नही छोड़ता
। आशा से एकत्र किया हुआ धन बड़े ही दुःख
से भोगने में आता है । विद्वान ऐसे धनसंग्रह के कार्य की प्रसंशा नही करते और
मृत्यु भी उसकी यह राह देखती की उसने आशापूर्वक एकत्रित किये हुए धन का उपभोग किया
है या नहीं ।
धर्म का आचरण शुद्ध मन से होता है
इसलिए मन से सदा सबका भला मानना चाहिये । धर्माचरण करने में दुसरे की सहायता या
साथ की अपेक्षा नही रखनी चाहिये । धर्म की मनुष्यों की जड है, धर्म ही स्वर्ग में
देवताओं को अमर बनाता है । जो धर्माचरण
करते है, वे मृत्यु के अनन्तर भी नित्य सुख भोगते है ।
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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