Saturday 10 November 2012

इस युग में नाम-जप ही प्रधान साधन है


       संसार समुद्र से पार होने के लिए कलियुग में श्रीहरि-नाम से बढ़कर और कोई भी सरल साधन नहीं है l  भगवन्नाम से लोक-परलोक के सारे अभावों की पूर्ति तथा दुखों का नाश हो सकता है l अतएव संसार के दुःख-सुख, हानि-लाभ, अपमान-मान, अभाव-भाव, विपत्ति-संपत्ति - सभी अवस्थाओं में प्रतिक्षण भगवान् का नाम लेते रहना चाहिए, विश्वासपूर्वक लेते रहना चाहिए l  नाम साक्षात् भगवान् ही हैं, यों मानना चाहिए l  नाम-जप इस युग में सबसे बढ़कर भजन है l
        नाम-जप करनेवालों का बुरे आचरण और बुरे भावों से यथासाध्य बचना चाहिए l झूठ-कपट, धोखा-विश्वासघात, छल-चोरी, निर्दयता-हिंसा, द्वेष-क्रोध, ईर्ष्या-मत्सरता, दूषित आचार-व्यभिचार आदि दोषों से अवश्य बचना चाहिए l  एक बात से तो पूरा ख्याल रखकर बचना चाहिए - वह यह कि भजन का बाहरी स्वांग बनाकर इन्द्रिय तृप्ति या किसी भी प्रकार के नीच स्वार्थ का साधन कभी नहीं करना चाहिए l नाम से पाप नाश करना चाहिए l  परन्तु नाम को पाप करने में सहायक कभी नहीं बनाना चाहिए l  नाम जपते-जपते ऐसी भावना करनी चाहिए कि प्रत्येक नाम के साथ भगवान् के दिव्य गुण- अहिंसा, सत्य, दया, प्रेम, सरलता, साधुता, परोपकार, सहृदयता, ब्रह्मचर्य, अस्तेय, अपरिग्रह, संतोष, शौच, श्रद्धा, विश्वास आदि मेरे अन्दर उतर रहे हैं और भरे जा रहे हैं l  मेरा जीवन इन दैवी गुणों से तथा भगवान् के प्रेम से ओत-प्रोत हो रहा है l  अहा ! नाम के उच्चारण के साथ ही मेरे इष्टदेव प्रभु का ध्यान हो रहा है, उनके मधुर-मनोहर स्वरूप के दर्शन हो रहे हैं, उनकी सौन्दर्य-माधुर्य-सुधामयी त्रिभुवन पावनी ललित लीलाओं की झाँकी हो रही है l  मन-बुद्धि उनमें तदाकारता को प्राप्त हो रहे हैं l
        मन न लगे तो नाम-भगवान् से प्रार्थना करनी चाहिए - 'हे नाम-भगवान्  ! तुम दया करो, तुम्हीं साक्षात् मेरे प्रभु हो, अपने दिव्य प्रकाश से मेरे अन्तःकरण के अन्धकार का नाश कर दो l  मेरे मन के सारे मल को जला दो l  तुम सदा मेरी जिह्वा पर नाचते रहो और नित्य-निरन्तर मेरे मन में विहार करते रहो l  तुम्हारे जीभ पर आते ही मैं प्रेमसागर में डूब जाऊं, सारे जगत को, जगत के सारे सम्बन्धों को, तन-मन को, लोक-परलोक को, स्वर्ग-मोक्ष को भूलकर केवल प्रभु के - तुम्हारे प्रेम में ही निमग्न हो रहूँ l लाखों जिह्वाओं से तुम्हारा उच्चारण करूँ, लाखों-करोड़ों कानों से मधुर नाम-ध्वनि को सुनूँ और करोड़ों-अरबों मनों से दिव्य नामानन्द का पान करूँ l तृप्त होऊं ही नहीं l  पीता ही रहूँ नाम-सुधा को और उसी में समाया रहूँ l '

सुख-शान्ति का मार्ग[३३३]                                        
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Ram