मनुष्य के लिए गिरना सहज है, चढ़ना कठिन l जरा-सा पैर फिसला कि गिरा; पर चढ़ने में प्रयास करना पड़ता है l वर्तमान में तो सब ओर कुसंग-ही-कुसंग है l हाथ पकड़कर बचाने वाले, रक्षा करने वाले, चढ़ने में सहायता करने वाले पुरुषों का - ऐसे वातावरण का मिलना प्रायः कठिन हो गया है l इस अवस्था में मनुष्य का पतन हो जाये तो कोई आश्चर्य नहीं l पर इस समय भी जो सावधान एवं सचेत है तथा जिन्होंने किसी अमोघ शरण्य-शक्ति का आश्रय ले रखा है, वे गिरने से बचकर ऊँचे पर चढ़ सकते हैं, अनायास ही ऊर्ध्व गति को प्राप्त हो सकते हैं l इसके लिए करना यह है -
१- निकम्मा न रहकर काम में लगे रहना l काम भी ऐसा हो, जो बुरे विचारों को उत्पन्न करनेवाला, बढ़ाने वाला न हो और दबे बुरे विचारों को उभाड़ने वाला न हो l
२- यथासाध्य आँख, कान, नासिका, जिह्वा और त्वक - इन सभी इन्द्रियों को तथा मन को सत - भगवान् के साथ जोड़े रखने का प्रयत्न करना l इनके द्वारा असत -गिराने वाले विषयों का सेवन कभी न करना l
३- प्रतिदिन सद्विचारों के उदय, संरक्षण तथा संवर्धन के लिए सत्संग या सद्ग्रन्थों का श्रद्धापूर्वक अध्ययन करना l
४- भगवान् के किसी भी नाम का जप और यथासाध्य भगवान् का स्मरण सदा करते रहना l
५- भगवान् कि अमोघ तथा अहैतुकी अनन्त कृपा पर परम तथा अटल विश्वास करना l
६- जहाँ तक बने, किसी से द्वेष न करना , किसी का बुरा न चाहना, न करना l दूसरे के हित की बात सोचना-करना, मित्रभाव से बर्ताव करना l दुखी प्राणियों के दुःख से निरन्तर करुना द्रवित रहना l अपराध करनेवालों का भी मंगल चाहना और वे संत-स्वभाव के बन जाएँ ऐसी सद्भावना करना तथा भगवान् से प्रार्थना करना l दूसरों की निन्दा न करना l
७- अपने पास जो कुछ भी है, उसे भगवान् की वस्तु समझकर अभावग्रस्त प्राणिमात्र की सेवा में निरभिमान हो कर यथायोग्य लगाते रहना l
८- भगवान् सर्वशक्तिमान सर्वलोकमहेश्वर होते हुए ही मेरे परम सुहृद हैं , यह मानकर उनके अनन्य शरण होना l
सुख-शान्ति का मार्ग[३३३]
१- निकम्मा न रहकर काम में लगे रहना l काम भी ऐसा हो, जो बुरे विचारों को उत्पन्न करनेवाला, बढ़ाने वाला न हो और दबे बुरे विचारों को उभाड़ने वाला न हो l
२- यथासाध्य आँख, कान, नासिका, जिह्वा और त्वक - इन सभी इन्द्रियों को तथा मन को सत - भगवान् के साथ जोड़े रखने का प्रयत्न करना l इनके द्वारा असत -गिराने वाले विषयों का सेवन कभी न करना l
३- प्रतिदिन सद्विचारों के उदय, संरक्षण तथा संवर्धन के लिए सत्संग या सद्ग्रन्थों का श्रद्धापूर्वक अध्ययन करना l
४- भगवान् के किसी भी नाम का जप और यथासाध्य भगवान् का स्मरण सदा करते रहना l
५- भगवान् कि अमोघ तथा अहैतुकी अनन्त कृपा पर परम तथा अटल विश्वास करना l
६- जहाँ तक बने, किसी से द्वेष न करना , किसी का बुरा न चाहना, न करना l दूसरे के हित की बात सोचना-करना, मित्रभाव से बर्ताव करना l दुखी प्राणियों के दुःख से निरन्तर करुना द्रवित रहना l अपराध करनेवालों का भी मंगल चाहना और वे संत-स्वभाव के बन जाएँ ऐसी सद्भावना करना तथा भगवान् से प्रार्थना करना l दूसरों की निन्दा न करना l
७- अपने पास जो कुछ भी है, उसे भगवान् की वस्तु समझकर अभावग्रस्त प्राणिमात्र की सेवा में निरभिमान हो कर यथायोग्य लगाते रहना l
८- भगवान् सर्वशक्तिमान सर्वलोकमहेश्वर होते हुए ही मेरे परम सुहृद हैं , यह मानकर उनके अनन्य शरण होना l
सुख-शान्ति का मार्ग[३३३]
0 comments :
Post a Comment