केवल
तुम्हें पुकारूँ प्रियतम ! देखूँ एक तुम्हारी ओर।
अर्पण
कर निजको चरणोंमें बैठूँ हो निश्चिन्त, विभोर॥
प्रभो
! एक बस,
तुम ही मेरे हो सर्वस्व सर्वसुखसार।
प्राणोंके
तुम प्राण, आत्माके आत्मा आधेयाऽधार॥
भला-बुरा,
सुख-दुःख, शुभाशुभ मैं, न
जानता कुछ भी नाथ !।
जानो
तुम्हीं,
करो तुम सब ही, रहो निरन्तर मेरे साथ॥
भूलूँ
नहीं कभी तुमको मैं, स्मृति ही हो बस,
जीवनसार।
आयें
नहीं चित्त-मन-मतिमें कभी दूसरे भाव-विचार॥
एकमात्र
तुम बसे रहो नित सारे हृदय-देशको छेक।
एक
प्रार्थना इह-परमें तुम बने रहो नित संगी एक॥
- श्रीहनुमान प्रसाद जी पोद्दार- भाईजी , पदरत्नाकर पद नं० - 68
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