Friday, 12 July 2013

पदरत्नाकर

जो चाहो तुम, जैसे चाहो, करो वही तुम, उसी प्रकार।
बरतो नित निर्बाध सदा तुम मुझको अपने मन-‌अनुसार॥
मुझे नहीं हो कभी, किसी भी, तनिक दुःख-सुखका कुछ भान।
सदा परम सुख मिले तुम्हारे मनकी सारी होती जान॥
भला-बुरा सब भला सदा ही; जो तुम सोचो, करो विधान।
वही उच्चतम, मधुर-मनोहर, हितकर परम तुम्हारा दान॥
कभी न मनमें उठे, किसी भी भाँति, कहीं, कैसी भी चाह।
उठे कदाचित्‌ तो प्रभु उसे न करना पूरी, कर परवाह॥
प्यारे ! यही प्रार्थना मेरी, यही नित्य चरणोंमें माँग-
मिटे सभी मैं-मेरा’, बढ़ता रहे सतत अनन्य अनुराग॥
- श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार - भाईजी , पदरत्नाकर , पद- ७१ 


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Ram