Wednesday 3 July 2013

गो-महिमा -३-

|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

आषाढ़ कृष्ण, योगिनी एकादशी, 
बुधवार, वि० स० २०७०


गत ब्लॉग से आगे ...गौएँ परम पावन और पुण्यस्वरूपा है | इन्हें ब्रह्मणों को दान करने से मनुष्य स्वर्ग का सुख भोगता है | पवित्र जल से आचमन करके पवित्र गौओं के बीच में गोमती-मन्त्र ‘गोमा अग्ने विमाँ अश्वी’ का जप करने से मनुष्य अत्यन्त शुद्ध एवं निर्मल (पापमुक्त) हो जाता है | विद्या और वेदव्रत में निष्णात पुण्यात्मा ब्राह्मणों को चाहिये की वे अग्नि, गौ और ब्रह्मणों के बीच अपने शिष्यों को यज्ञतुल्य गोमती-मन्त्र की शिक्षा दे | जो तीन रात तक उपवास करके गोमती-मन्त्र का जाप करता है उसे गौओं का वरदान प्राप्त होता है | पुत्र की इच्छा वाले को पुत्र, धन की इच्छा वाले को धन और पति की इच्छा रखनेवाली स्त्री को पति मिलता है | इस प्रकार गौएँ मनुष्य की सम्पूर्ण कामनाये पूर्ण करती है | वे  यज्ञ का प्रधान अंग है, उनसे बढ़कर दूसरा कुछ नहीं |  (महा० अनु० ८१)

गौ-मन्त्र जाप से पापनाश

‘गाय घृत और दूध देने वाली है, घृत का उत्पतिस्थान, घृत को प्रगट करने वाली, घृत की नदी और घृत की भवरँरूप है, वे सदा मेरे घर में निवास करे | घृत सदा मेरे ह्रदय में रहे, मेरी नाभि में रहे, मेरे सारे अंगों में रहे और मेरे मन में स्तिथ रहे | गायें सदा मेरे आगे रहे, गायें सदा मेरे पीछे रहे, गायें मेरे चारों और रहे और मैं गायों के बीच में ही निवास करूँ|’                      (महा० अनु० ८०|१-४)

जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल और सांयकाल आचमन करके उपर्युक्त मन्त्र का जाप करता है, उसके दिन भर के पाप नष्ट हो जाते है |

शेष अगले ब्लॉग में.....      


—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तकसे, कोड ८२०, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश, भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!
If You Enjoyed This Post Please Take 5 Seconds To Share It.

0 comments :

Ram