हमें
ऐसा बल दो भगवान !
जिससे
कभी समीप न आयें पाप-ताप बलवान॥
पर-सुख-हित-निमित्त
निज सुखका हो स्वाभाविक त्याग।
बढ़ते
रहें पवित्र भाव, हो प्रभु-पदमें
अनुराग॥
भोगोंमें
न रहे रंचकभर मेरापन अभिमान।
बनी
रहे स्मृति सदा तुम्हारी पावन मधुर महान॥
लीला-गुण,
शुचि नाम तुम्हारा हों जीवन-आधार।
रोम-रोमसे
निकले सदा तुम्हारी जय-जयकार॥
- परम श्रद्धेय श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार-भाईजी , पदरत्नाकार , पद- ७३
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