Sunday, 14 July 2013

पदरत्नाकार

हमें ऐसा बल दो भगवान !
जिससे कभी समीप न आयें पाप-ताप बलवान॥
पर-सुख-हित-निमित्त निज सुखका हो स्वाभाविक त्याग।
बढ़ते रहें पवित्र भाव, हो प्रभु-पदमें अनुराग॥
भोगोंमें न रहे रंचकभर मेरापन अभिमान।
बनी रहे स्मृति सदा तुम्हारी पावन मधुर महान॥
लीला-गुण, शुचि नाम तुम्हारा हों जीवन-‌आधार।
रोम-रोमसे निकले सदा तुम्हारी जय-जयकार॥
- परम श्रद्धेय श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार-भाईजी , पदरत्नाकार , पद- ७३  

If You Enjoyed This Post Please Take 5 Seconds To Share It.

0 comments :

Ram