Monday, 15 July 2013

पदरत्नाकर




॥श्री हरि:॥

 

हे मेरे ! तुम, प्राण-प्राण ! तुम, जीवनके जीवन-‌आधान।
मैंसे रहित बना दो मुझको, हर लो अहंकार-‌अभिमान॥
कर दो मुझे अकिंचन पूरा, हर लो सभी लोक-परलोक।
भर जा‌ओ उर अमित ज्योति तुम ! हर लो मिथ्या तम-‌आलोक॥
नटवर ! नाचो मनमाने तुम, मुझे नचा‌ओ मन-‌अनुसार।
कण-कणपर हो प्रकट तुम्हारा क्रियाशील अनुपद अधिकार॥
कठपुतलीकी भाँति सर्वथा समत, नीरव, वाक्य-विहीन।
नाचें सभी अंग-‌अवयव, हो तव रुचि रय रज्जु-‌आधीन॥

—परम श्रद्धेय नित्यलीलालीन श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार – भाईजी , पदरत्नाकर कोड- 50, गीता प्रेस , गोरखपुर
 

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Ram