|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
वैशाख शुक्ल, एकादशी, मंगलवार, वि० स० २०७०
गत ब्लॉग से आगे...३०. मीठा बोलो, ताना न मारों, कडवी जबान
न कहों; बीच में न बोलो, बिना पूछे सलाह न दो; सच बोलो, अधिक न बोलो, बिलकुल मौन
भी न रहों; हँसी-मजाक न करों; निंदा-चुगली न करों, न सुनों; गाली न दो, शाप-वरदान
न दो |
३१. नम्र और विनयशील रहो, झूठी चापलूसी न करों, ऐठो नहीं,
मान दो पर मान न चाहों |
३२. दुसरे के द्वारा अच्छा वर्ताव होने पर ही मैं उसके साथ
अच्छा करूँगा, ऐसी कल्पना न करों | अपनी और से पहले से ही सबसे अच्छा वर्ताव करों,
जो अपनी बुराई करे उसके साथ भी |
३३. गरीबों के साथ सहानुभूति रखों |
३४. किसी फार्ममें, संस्था में या किसी व्यक्ति के लिए काम
करो-नौकरी करों तो पूरी वफादारी से करों | सदा तन-मन-वचन से उसका हित चिन्तन ही
करते रहों |
३५. जहाँ रहों अपनी इमानदारी, वफादारी, होशियारी,
कार्य-कुशलता, मीठे-वचन, परिश्रम और सच्चाई से अपनी जरूरत पैदा कर दो | अपना स्थान
स्वयं बना लों |
३६. प्रत्यक्ष लाभ दीखने पर भी अनुचित लोभ न करों | अपनी
इमानदारी को हर हालत में बचाये रखों | दुसरे का हक किसी तरह भी स्वीकार न करों |
ईमान न बिगाड़ो |
३७. आचरणों को-चरित्र को सदा पवित्र बनाये रखने की कोशिश
करों |
३८. बिना ही कारण मान-बड़ाई केलिए न तरसों | गरीबी से न
डरों, बेईमानी और बुरी आदतों से अवश्य भय करों ......शेष अगले ब्लॉग में.
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
0 comments :
Post a Comment