Wednesday, 15 January 2014

मृत्युंजययोग -३-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

पौष शुक्ल, चतुर्दशी, बुधवार, वि० स० २०७०

मृत्युंजययोग -३-

 
गत ब्लॉग से आगे.....उद्धव ! एक बार निश्चय पूर्वक आरम्भ करने के बाद फिर मेरा यह निष्काम धर्म किसी प्रकार की विघ्न-बाधाओं से अणुमात्र भी ध्वंस नहीं होता; क्योकि निर्गुण होने के कारण मैंने ही इसको पूर्णरूप से निश्चिन्त किया है ।

हे संत ! भय, शोक आदि कारणों से भागने, चिल्लाने आदि व्यर्थ के प्रयासों को भी यदि निष्काम बुद्धि से मुझ परमात्मा को अर्पण कर दे तो वह  भी परम धर्म हो जाता है । इस असत और विनाशी मनुष्यशरीर के द्वारा इसी जन्म में मुझ सत्य और अमर परमात्मा को प्राप्त कर लेने में ही बुद्धिमानों की बुद्धिमानी और चतुरों की चतुराई है । (श्रीमद्भागवत ११|२९|२२)

अतएव जो मनुष्य भगवान् की प्राप्ति के लिए कोई यत्न न करके केवल विषयभोगों में ही लगे हुए है, वे श्री भगवान् के मत में न तो बुद्धिमान ही है न मनीषी ही है              


श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!    
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Ram