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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
पौष शुक्ल, चतुर्दशी, बुधवार, वि० स० २०७०
मृत्युंजययोग -३-
गत ब्लॉग
से आगे.....उद्धव !
एक बार निश्चय पूर्वक आरम्भ करने के बाद फिर मेरा यह निष्काम धर्म किसी प्रकार की विघ्न-बाधाओं
से अणुमात्र भी ध्वंस नहीं होता; क्योकि निर्गुण होने के कारण मैंने ही इसको
पूर्णरूप से निश्चिन्त किया है ।
हे संत !
भय, शोक आदि कारणों से भागने, चिल्लाने आदि व्यर्थ के प्रयासों को भी यदि निष्काम
बुद्धि से मुझ परमात्मा को अर्पण कर दे तो वह
भी परम धर्म हो जाता है । इस असत और विनाशी मनुष्यशरीर के द्वारा इसी जन्म
में मुझ सत्य और अमर परमात्मा को प्राप्त कर लेने में ही बुद्धिमानों की
बुद्धिमानी और चतुरों की चतुराई है । (श्रीमद्भागवत ११|२९|२२)
अतएव जो
मनुष्य भगवान् की प्राप्ति के लिए कोई यत्न न करके केवल विषयभोगों में ही लगे हुए
है, वे श्री भगवान् के मत में न तो बुद्धिमान ही है न मनीषी ही है ।
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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