Sunday, 26 January 2014

सच्चा भिखारी -११-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

माघ कृष्ण, दशमी, रविवार, वि० स० २०७०

सच्चा भिखारी  -११-

 गत ब्लॉग से आगे....घर के पास पहुच कर ब्राह्मण ने देखा तो झोपडी नहीं है । वहां एक बड़ा सुन्दर महल बना हुआ है । ब्राह्मण सुदामा ने सोचा, किसी राजा ने जमीन छीनकर महल बनवा लिया होगा । ब्राह्मण को बड़ी चिन्ता हुई । फूँस की मडैया और पतिव्रता ब्राह्मणी भी गयी । इतने में सुदामा देखते है की उनकी स्त्री महल के झरोखों में खड़ी उन्हें पुकार रही है । ब्राह्मण ने सोचा, दुष्ट राजा ने स्त्री को भी हर लिया है, पर वह बुला क्यों रही है ? ब्राह्मण डॉ कर दौड़े । बड़ी कठिनता से नौकर उन्हें समझा-बुझाकर घर में ले गए । गृहणी ने बहुत ही नम्रता से चरणों में प्रणाम करके कहा, ‘प्राणेश्वर  ! डरे नहीं । यह अतुल सम्पति आपकी ही है, आपके मित्र ने आपको यह भेट दी है ।’

सुदामा बोले, ‘मैंने तो उनसे कुछ माँगा नहीं था ।’

ब्राह्मणी ने कहाँ, ‘आपने प्रत्यक्ष नहीं माँगा, इसी से उन्होंने आपको प्रत्यक्ष में कुछ भी नहीं दिया ।’ अन्तर्यामी यो ही किया करते है । ब्राह्मण की दोनों आँखों में आसूंओं की धारा बह चली । प्राणसखा के प्रेम की स्मृति में सुदामा भावावेश से विहल हो उठे ।......शेष अगले ब्लॉग में ।

 
श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!    
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Ram