Saturday 4 January 2014

भक्त के लक्षण -१-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

पौष शुक्ल,तृतीया, शनिवार, वि० स० २०७०

भक्त के लक्षण -१-

भगवान को भक्तो का बड़ा महत्व है वे जगत के लिए आदर्श होते है; क्योकि भगवद्भक्ति के प्रताप  से उनमे दुर्लभ दैवी गुण अनिवार्यरूप से प्रकट हो जाते है, जो उनके लिए स्वाभाविक लक्षण होते है भक्त का स्वरुप जानने के लिये उन लक्षणों का जानना आवश्यक है उनमे से कुछ ये है -

१. भक्त अज्ञानी नहीं होता, वह भगवान के प्रभाव, गुण, रहस्य को तत्व से जानने वाला होता है प्रेम के लिए ज्ञान की बड़ी आवश्यकता है किसी न किसी अंश में जाने बिना उससे प्रेम नहीं हो सकता और प्रेम होने पर ही उसका गुह्तम यथार्थ रहस्य जाना जाता है भक्त भगवान के गुह्तम रहस्य को जानता है, इसलिए भगवान के प्रति उसका प्रेम उतरोतर बढ़ता ही रहता है भगवान रससार है उपनिष भगवान को ‘रसो वै स:’ कहते है इस प्रेम में भी द्वैत  नहीं भासता ! प्रेम की प्रबलता से ही राधा जी कृष्ण बन जाती है और श्री कृष्ण राधा जी कबीर साहब कहते है – 

जब में था तब हरी नहीं, अब हरी हैं मैं नायँ

प्रेम-गली अति साँकरी, यामे दो न समायँ ।।

वस्तुत: ज्ञानी और भक्त की स्थिति में कोई अन्तर नहीं होता भेद इतना ही है, ज्ञानी ‘सर्वं खल्विदं ब्रह्म’ कहता है और भक्त ‘वासुदेव: सर्वमिति’ अथवा गोसाइजी की भाषा में वह कहता है –

सिय राममय सब जग जानी
करऊँ प्रनाम जोरि जग पानी ।। .........शेष अगले ब्लॉग में

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!
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Ram