Thursday, 16 January 2014

सच्चा भिखारी -१-

।। श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
पौष शुक्ल, पूर्णिमा, गुरुवार, वि० स० २०७०

सच्चा भिखारी  -१-

जग जाचिअ कोऊ न, जाचिअ जौ,  जियँ जाचिअ जानकीजानहि  रे  ।
जेहि जाचक जाचकता जरि जाई, जो जारति जोर जहानहि  रे  ।।
गति देखु बिचारी बिभीषनकी, अरु आनु हिएँ हनुमानहि  रे ।
तुलसी ! भजु दारिद-दोष-दवानल, संकट-कोटि-कृपानहि  रे  ।।              

सारा संसार भिखारी है, सदा से भिखारी है, कुछ परमात्मा के प्रेम-पागलों को छोड़ कर संसार में ऐसा कोई नहीं जिसे कुछ भी न चाहिये । कोई भी अपनी स्थिति से संतुष्ट है, इसलिये जीव सदा से भिक्षापरायण है; परन्तु उसकी भीख की झोली कभी भरती नहीं ।  वह माँग-माँगकर जितना ही झोली में डालता है उतनी ही उसकी झोली खाली होती  जाती है । अतएव उसका भिखारीपन कभी नहीं मिटता । कारण यही है की वह माँगना नही जानता, वह उनसे मांगता है जो स्वयं भिखारी है या उन वस्तुओं को मांगता है जो सदा अभावमयी हैं ।

 इसलिए मित्रों ! यदि माँगते-माँगते थक गए हो, अपमान सहते-सहते तुम्हारे प्राण व्याकुल हो उठे हो तो एक बार उस जानकीजीवन श्रीराम से माँगकर देखों ! 

प्रसिद्ध परमहंस स्वामी कृष्णानन्दजी ने एक बार कहाँ था-असली भिखारी जगत में द्वार-द्वार पर तभी तक भटकता है, जबतक की उसकी भीख की झोली पूर्ण-परमात्मा के कृपा-कणों से नही भर जाती । ....शेष अगले ब्लॉग में ।

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  


नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!     
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Ram