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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
पौष शुक्ल, पूर्णिमा, गुरुवार, वि० स० २०७०
सच्चा भिखारी
-१-
जग जाचिअ
कोऊ न, जाचिअ जौ, जियँ जाचिअ
जानकीजानहि रे ।
जेहि
जाचक जाचकता जरि जाई, जो जारति जोर जहानहि
रे ।।
गति देखु
बिचारी बिभीषनकी, अरु आनु हिएँ हनुमानहि
रे ।
तुलसी !
भजु दारिद-दोष-दवानल, संकट-कोटि-कृपानहि
रे ।।
सारा संसार भिखारी है, सदा से भिखारी है, कुछ परमात्मा के
प्रेम-पागलों को छोड़ कर संसार में ऐसा कोई नहीं जिसे कुछ भी न चाहिये । कोई भी अपनी स्थिति से संतुष्ट है, इसलिये जीव सदा से
भिक्षापरायण है; परन्तु उसकी भीख की झोली कभी भरती नहीं । वह माँग-माँगकर जितना ही झोली में डालता है
उतनी ही उसकी झोली खाली होती जाती है ।
अतएव उसका भिखारीपन कभी नहीं मिटता । कारण यही है की वह माँगना नही जानता, वह उनसे
मांगता है जो स्वयं भिखारी है या उन वस्तुओं को मांगता है जो सदा अभावमयी हैं ।
इसलिए मित्रों ! यदि माँगते-माँगते थक गए हो, अपमान सहते-सहते तुम्हारे प्राण
व्याकुल हो उठे हो तो एक बार उस जानकीजीवन श्रीराम से माँगकर देखों !
प्रसिद्ध
परमहंस स्वामी कृष्णानन्दजी ने एक बार कहाँ था-असली
भिखारी जगत में द्वार-द्वार पर तभी तक भटकता है, जबतक की उसकी भीख की झोली
पूर्ण-परमात्मा के कृपा-कणों से नही भर जाती । ....शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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