|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र शुक्ल, त्रयोदशी-चतुर्दशी, बुधवार, वि० स० २०७०
लोग धनियोंके बाहरी ऐश्वर्यको देखकर
समझते हैं कि ये बड़े सुखी हैं, हम भी ऐसे ही
ऐश्वर्यवान् हों तब सुखी हों, पर वे भूलते हैं!
जिन्होंने धनियोंका हृदय टटोला है, उन्हें पता है कि धनी दरिद्रोंकी अपेक्षा कम दु:खी नहीं हैं ! दुःख के कारण
और रूप अवश्य ही भिन्न-भिन्न हैं !
धनकी इच्छा कभी न करो, इच्छा करो उस परमधन परमात्माकी, जो एक बार मिल जानेपर कभी जाता नहीं ! धनमें सुख नहीं है, क्योंकि धन तो आज है कल नहीं! सच्चा सुख परमात्मामें है-- जो सदा बना ही रहता है !
प्रतिदिन सुबह और शाम मन लगाकर भगवान् का स्मरण अवश्य किया करो, इससे चौबिसों घंटे शान्ति रहेगी और मन बुरे संस्कारोंसे बचेगा !
धन, सम्पत्ति या मित्रोंको पाकर अभिमान न करो, जिस
परमात्माने तुम्हें यह सब कुछ दिया है उसका उपकार मानो !धनकी इच्छा कभी न करो, इच्छा करो उस परमधन परमात्माकी, जो एक बार मिल जानेपर कभी जाता नहीं ! धनमें सुख नहीं है, क्योंकि धन तो आज है कल नहीं! सच्चा सुख परमात्मामें है-- जो सदा बना ही रहता है !
प्रतिदिन सुबह और शाम मन लगाकर भगवान् का स्मरण अवश्य किया करो, इससे चौबिसों घंटे शान्ति रहेगी और मन बुरे संस्कारोंसे बचेगा !
भक्त वही है जिसका अन्तः करण समस्त पाप-तापोंसे रहित होकर केवल अपने इष्टदेव परमात्माका नित्य-निकेतन बन गया है !
भक्तका हृदय ही जब पापोंसे शून्य होता है, तब उसकी शारीरिक क्रियाओंमें तो पापको स्थान ही कहाँ है ? जो रात-दिन पापमें लगे रहकर भी अपनेको भक्त समझते हैं, वे या तो जगत् को ठगनेके लिये ऐसा करते हैं अथवा स्वयं अपनी विवेक-हीन बुद्धिसे ठगे गए हैं !
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, आनन्द की लहरें पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!
नारायण !!!
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