Monday 15 October 2012

सुखी होने का सर्वोत्तम उपाय




भगवद्-विश्वास और विषयों कि आशा – इन दोनों में बड़ा विरोध है तथापि विषय भी भगवान् की पूजा के लिए रहें तो कोई आपत्ति नहीं है , किन्तु विषयों से जो आशा है सुखकी, समृद्धिकी , आरामकी, शान्तिकी, उन्नति की उद्धारकी, प्रगतिकी, - ये जितनी भी शुभ आशाएं हम विषयों से करते हैं, यह दुराशा है; क्योंकि उनमे यह चीज है ही नहीं। जो चीज जहाँ है ही नहीं , वह वहाँ से मिलेगी ? श्रीतुलसीदासजी ने कहा है कि मृग-जलसे किसी की तृष्णा मिति हो तो विषयों से तृष्णा मिटे । पानी जहाँ है ही नहीं, केवल बालूमें लहरियां पड़ी हैं और बालू तप्त है एवं हम चाहें की यह बालू हमारी प्यास बुझा दे , तब बुझाएगा कैसे ? जब वहाँ पानी है ही नहीं । इसीलिये जबतक मनुष्य-जगतकी , जगत के पदार्थोंकी, भोगोंकी, भोग-वस्तुओं की और जगतके सम्बन्धियों एवं प्राणियों की आशा करेगा; तबतक वह कदापि सफल नहीं होगा । परन्तु सबसे बड़ी मुश्किल यह है की हम कहते-सुनते तो हैं, परन्तु कहने सुनने वालों के मनपर भी जब देखा जाता है कि मोह पड़ा हुआ है , विषयों की आशा है और भगवान् में पूरा विश्वास नहीं है ।भगवान् में पूरा विश्वास हो तो विषयों की आशा रहे ही नहीं और विषयों की आशा है तो भगवान् में पूरा विश्वास है ही नहीं ।
     जहाँ राम तहां काम नहिं जहाँ राम नहिं काम ।
     तुलसी कबहुँक  रहि सके रवि रजनी एक ठास ।। 
शेष  अगले ब्लॉग में ...........
-      कल्याण संख्या – ९ ,२०१२
-      श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार – भाईजी 
 
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Ram