Tuesday, 19 February 2013

दुःख में भगवतकृपा -11-


|| श्री हरि:||
आज की शुभ तिथि – पंचांग
माघ  शुक्ल,नवमी, मंगलवार, वि० स० २०६९



भोग उसे चाहे जहाँ ले जाते है | वे उसे धर्मच्युत कर देते है | वह भोग का ग़ुलाम है | इसलिये भगवान ने भोगो को ‘दुखयोनी’ कहा है | भोगो पर स्वामित्व हो, मन न्रिग्र्ह्त हो, सारे-के-सारे भोग और अन्तकरण निरन्तर भगवान की सेवा में लगे हो, तभी भोगो का स्वामित्व है | ऐसा नहीं है तो भोग का स्वामी कहलाकर भी वह भोग का गुलाम बना हुआ है और जहाँ भोगो की गुलामी है,वहाँ भगवान की कृपा कैसी ! भगवान की कृपा तो वहाँ आती है, जहाँ सारी गुलामी छुटकर केवल भगवान की दासता होती है | तमाम परतंत्रता टूट गयी, रह गया केवल भगवान का चरणआश्रय | वही होता है भगवान की कृपा का प्रगट्य | जितनी-जितनी भोगो की वृद्धि होती है, उतनी-उतनी उनकी दासता बढती है | जिसकी जितनी बड़ी ख्याति है, बड़ी कीर्ति है, उसकी उतनी ही अधिक बदनामी है; इसलिए भोगबाहुल्य भगवान की कृपा का लक्षण नहीं है | भगवान की कृपा तो वहाँ होती है, जहाँ भगवान का प्रेम है और भगवद चरण अनुराग  है |  कितने साधक कहते है की ‘अमुक आदमी कितना सुखी हो गया | कितना पैसे वाला हो गया, उसके व्यापार हो गया, आपने उनपर कृपा की | हमारे साथ तो आपका दुर्भाव है |’ पर उन्हें कैसे समझाया जाये की भोगबाहुल्य तो भगवान की अकृपा का लक्षण है |     
शेष अगले ब्लॉग में ...

नारायण नारायण नारायण.. नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....

नित्यलीलालीन श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार, दुःख में भगवत्कृपा, पुस्तक कोड  ५१४, गीताप्रेस, गोरखपुर
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Ram