|| श्री हरि:||
आज की शुभ
तिथि – पंचांग
भोग उसे चाहे जहाँ ले जाते है
| वे उसे धर्मच्युत कर देते है | वह भोग का ग़ुलाम है | इसलिये भगवान ने भोगो को
‘दुखयोनी’ कहा है | भोगो पर स्वामित्व हो, मन न्रिग्र्ह्त हो, सारे-के-सारे भोग और
अन्तकरण निरन्तर भगवान की सेवा में लगे हो, तभी भोगो का स्वामित्व है | ऐसा नहीं
है तो भोग का स्वामी कहलाकर भी वह भोग का गुलाम बना हुआ है और जहाँ भोगो की गुलामी
है,वहाँ भगवान की कृपा कैसी ! भगवान
की कृपा तो वहाँ आती है, जहाँ सारी गुलामी छुटकर केवल भगवान की दासता होती है |
तमाम परतंत्रता टूट गयी, रह गया केवल भगवान का चरणआश्रय | वही होता है भगवान की कृपा का प्रगट्य | जितनी-जितनी भोगो की वृद्धि
होती है, उतनी-उतनी उनकी दासता बढती है | जिसकी जितनी
बड़ी ख्याति है, बड़ी कीर्ति है, उसकी उतनी ही अधिक बदनामी है; इसलिए भोगबाहुल्य
भगवान की कृपा का लक्षण नहीं है | भगवान की कृपा तो वहाँ होती है, जहाँ
भगवान का प्रेम है और भगवद चरण अनुराग है
| कितने साधक कहते है की ‘अमुक आदमी कितना सुखी हो गया | कितना
पैसे वाला हो गया, उसके व्यापार हो गया, आपने उनपर कृपा की | हमारे साथ तो आपका
दुर्भाव है |’ पर उन्हें कैसे समझाया जाये की भोगबाहुल्य तो भगवान की अकृपा का लक्षण है
|
शेष अगले ब्लॉग में ...
नारायण नारायण
नारायण.. नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण
नारायण....
नित्यलीलालीन श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी
पोद्दार, दुःख में भगवत्कृपा, पुस्तक कोड
५१४, गीताप्रेस, गोरखपुर
0 comments :
Post a Comment