|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन शुक्ल, चर्तुथी, शुक्रवार, वि० स० २०६९
एक बार एक महात्मा के पास एक स्त्री को साथ लेकर पाँच पुरुष
आये और उन्होंने कहा की ‘इस स्त्री का चरित्र ख़राब है, हम इसे पत्थरो से मारना
चाहते है |’ इस पर महात्मा के कहा ‘जरुर, इसका अपराध भयंकर है, इसे मारना चाहिये,
परन्तु मारे वही जिसकी आँख कभी पर स्त्री की और न गयी हो और जिसके मन में कभी
परस्त्री के प्रति कोई पाप न आया हो | नहीं तो मारनेवाला ही मर जाये |’ महात्मा की
इस बात को सुनकर तो सभी एक-दुसरे का मुहँ ताकने लगे | महात्मा ने कहा, ‘मारते
क्यों नहीं ?’ उन्होंने कहा, ‘भगवन ! कैसे मारे, ऐसी भूल तो हम सभी से होती है |’
तब महात्मा बोले ‘भलेमानसो ! तुम स्वयं जो अपराध करते हो, उसी के लिए दुसरे को
मारना चाहते हो, तुम्हारे न्यायनुसार पहले तुम्ही को क्यों नहीं मारना चाहिये ?’
बात यह है की पुरुष आज स्त्रियों की अपेक्षा कही अधिक
मात्रा में पाप करते है, पर अपने पापों का कोई प्रायश्चित नहीं करना चाहते, उनका
स्त्रियों को दण्ड देने का विचार करना एक प्रकार से हास्यपद ही है |
इन सभी बातो पर विचार करने से यही ठीक मालूम होता है की उस
बहिन का प्रथम अपराध और वह अज्ञानकृत होने से क्षमा के योग्य है और वह अब अपने पति
तथा घरवालों के द्वारा ऐसा प्रेमपूर्ण सद्व्यवहार प्राप्त करने की अधिकारिणी है की
जिससे भविष्य में उसके मन में ऐसी कोई पाप के कल्पना ही न आने पावे | यह विश्वाश
रखना चाहिये की जिससे छोटी उम्र में अज्ञानवश कुसंगतिमें पड़ने से अपराध हो जाते है,
उनका भविष्य-जीवन यदि अच्छा संग मिले तो पवित्र हो सकता है | ऐसे बहुत से उधाहरण
हमारे सामने है | मानसिक चिन्ता त्यागकर सद्वव्यवहार करने तथा बुरे संग से बचाने
से ऐसा अवश्य हो सकता है | मेरे इस कथन से जरा भी पाप का समर्थन कदापि न समझना
चाहिये |
ऐसे अपराधों में आजकल एक कारण और हो गया है, वह है
स्त्रियों का पुरुषों के साथ बेरोक-टोक
मिलना जुलना | स्त्री-स्वातंत्र्य
के नाम पर यह यदि बढ़ता रहा तो दशा और भी शोचनीय होगी |
यह सब होते हुए भी जो बहिन किसी भी कारण से ऐसा पाप कर
बैठती है, वह हिन्दू-आदर्श की दृष्टिसे तो बड़ा ही भयानक पाप करती है | किसी प्रकार
कुसंग में पड़कर किसी से ऐसा पाप बन जाये तो उसे अपने मन में बड़ा ही पश्चाताप करना
चाहिये और कम-से-कम एक लाख भगवाननाम-जप और तीन उपवास रखना चाहिये | साथ ही भगवान
को साक्षी देकर दृढ प्रतिज्ञा करनी चाहिये की किसी भी स्तिथी में अब किसी भी
करणवश ऐसा पाप नहीं करुँगी और भगवान से
करुणभाव से प्रार्थना करनी चाहिये की वे दया करके क्षमा करे |
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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