Saturday 16 March 2013

स्त्री का अपराध -3-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

 फाल्गुन शुक्ल, पन्चमी, शनिवार, वि० स० २०६९


हिन्दू स्त्री हँसते-हँसते अपने प्राण त्याग देती है, परन्तु ऐसे किसी बुरे विचार को भी सहन नहीं कर सकती | रानी शरतसुन्दरी छोटी उम्र में ही विधवा हो गयी थी | अंग्रेज कलेक्टरकी स्त्री उनसे मिलने आई और अपने देश की प्रथा की अनुसार उनसे पुन:विवाह करने को कह दिया | उसके ऐसा कहने में कुछ भी बुरा भाव नहीं था, परन्तु सती शरतसुन्दरी को बड़ा ही दुःख हुआ | उनको ऐसी पापकी बात अपने कानों से सुननी पड़ी, इसका बड़ा संताप हुआ और उन्होंने इसके प्रायश्चित के लिए अन्न-जल का त्याग कर दिया |  कलेक्टरकी पत्नी को पता लगा तब उसने आकर उनको समझया और क्षमा माँगी | हिन्दू स्त्री के लिए सबसे बड़ी मूल्यवान उसका सम्पति सतीत्व है और इसी के सरक्षण में उसका लोक-परलोक में महान कल्याण निश्चित है | इस विषय पर गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज के श्री रामचरित मानसमें अनसूया जी ने जगतजननी सीता जी से जो कुछ कहा, उसे पढना चाहिये |  

एकइ धर्म एक व्रत नेमा | काय बचन मन पति पद प्रेमा ||

जग पतिव्रता चारि बिधि अहही| बेद पुरान संत सब कहहि ||

उतम के अस बस मन माहि | सपनेहु आन पुरुष जग नाही ||

मध्यम प्रप्ति देखई कैसे | भ्राता पिता पुत्र निज जैसे ||

धर्म बिचारी समुझी कुल रहई | सो निकृष्ट त्रिय  श्रुति अस कहई ||

बिनु अवसर भय ते रह जोई | जानेहु अधम नारी जग सोई ||

पति बंचक परपति रति करई | रौरव नरक कल्प सत परई ||

छन सुख लागी जनम सत कोटि | दुःख न समुझ तेहि सम को खोटी ||

बिनु श्रम नारी परम गति लहई | पतिव्रत धर्म छांडी छल गहई ||

पति प्रतिकूल जनम जहं जाई | बिधवा होई पाइ तरुनाई ||

सो०-  सहज अपावनी नारी पति सेवत सुभ गति लहई |
        जसु  गावत श्रुति चारि अजहूँ तुलसिका हरिहि प्रिय ||

अर्थात शरीर, वचन और मन से पति के चरणों में प्रेम करना, स्त्रियों के लिए बस, यही एक धर्म है, एक ही व्रत है और एक ही नियम है | जगत में चार प्रकार की पतिव्रताए है | वेद, पुराण और संत सब ऐसा कहते है की उतम श्रेणी की पतिव्रता के मन में ऐसा भाव बसा रहता है की जगत में [मेरे पति को छोड़ कर] दूसरा पुरुष स्वप्न में भी नहीं है | मध्यम श्रेणी की पतिव्रताए पराये पति को कैसे देखती है , जैसे वह अपना सगा भाई, पिता या पुत्र हो | (अर्थात समान अवस्था वाले को भाई के रूप में, बड़े को पिता के रूप में और छोटे को पुत्र के रूप में देखती है |) जो धर्म को विचारकर और अपने कुल की मर्यादा समझकर बची रहती है वह निम्न श्रेणी की निक्रस्ट् (निम्न श्रेणी की ) स्त्री है, ऐसा वेद कहते है | और जो मौका न मिलने से भयवश पतिव्रता बनी रहती है, जगत में उसे अधम स्त्री जाना जाता है | 

पति को धोखा देने वाली जो स्त्री पराये पति से रति करती है, वह सौ कल्पों तक रौरव नरक में पड़ी रहती है | क्षणभर के सुख के लिए जो सौ करोड़ (असंख्य) जन्मों के दुःख को नहीं समझती, उसके समान दुष्टा कौन होगी | जो स्त्री छल छोड़ कर पति-व्रत धर्म को ग्रहण करती है, वह बिना ही परिश्रम परम गति को प्राप्त होती है | किन्तु जो पति के प्रतिकूल चलती है वह जहाँ भी जाकर जन्म लेती है, वहीं जवानी पाकर (भरी जवानी में ) विधवा हो जाती है | स्त्री जन्म से ही अपवित्र है, किन्तु पति के सेवा करके वह अनायास ही शुभ गति प्राप्त कर लेती है | [पातिव्रत-धर्म के कारण ही ] आज भी ‘तुलसीजी’ भगवान को प्रिय है और चारो वेद उनका यश गाते है |           

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!
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Ram