|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन शुक्ल, द्वादशी, रविवार, वि० स० २०६९
गत ब्लॉग से आगे ......कहा जाता है की भक्तराज प्रह्लादकी
अग्नि परीक्षा इसी दिन हुई थी | प्रहलाद के पिता
दैत्यराज हिरन्यकशिपु ने अपनी बहन ‘होलका’ से (जिसको भगवदभक्त के न सताने
तक अग्नि में न जलने का वरदान मिला था) प्रहलाद को जला देने के लिए कहा,
होलका राक्षसी उसे गोद में ले कर बैठ गयी,
चारो तरफ आग लगा दी गयी | प्रह्लाद भगवान के अनन्य भक्त थे, वे भगवान का नाम रटने
लगे | भगवतकृपा से प्रह्लाद के लिए अग्नि शीतल हो गयी और वरदान के शर्त के अनुसार
‘होलका’ उसमे जल मरी | भक्तराज प्रह्लाद
इस कठिन परीक्षा में उत्तीर्ण हुए और आकर पिता से कहने लगे |
राम नामके जापक जन है तीनो लोकों में निर्भय |
मिटते सारे ताप नाम की औषध से पक्का निश्चय ||
नहीं मानते हो तो मेरे तन की और निहारो तात |
पानी पानी हुई आग है जला नहीं किन्च्चित भी गात ||
इन्ही भक्तराज और इनकी विशुद्ध भक्ति का स्मारक रूप यह होली
का त्यौहार है | आज भी ‘होलिका-दहन’ के समय प्राय: सब मिलकर एकस्वर में ‘भक्तप्रवर
प्रह्लाद की जय’ बोलते है | हिरान्यक्शुपू के राजकाल में अत्याचारनी होलका का दहन
हुआ और भक्ति तथा भगवान के अटल प्रताप से दृढव्रत भक्त प्रह्लाद की रक्षा हुई और
उन्हें भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन हुए |
इसके सिवा इस दिन सभी वर्ण के लोग भेद छोड़कर परस्पर मिलते-जुलते
है | शायद किसी ज़माने में इसी विचारसे यह त्यौहार बना हो की सालभर के विधि-निषेधमय
जीवन को अलग-अलग अपने-अपने कामों में बिताकर इस एक दिन सब भाई परस्पर गले लग कर
प्रेम बढ़ावे | कभी भूलसे या किसी कारण से किसी का मनोमालिन्य हो गया हो तो उसे इस
दिन आनन्दके त्यौहार में एक साथ मिल-जुलकर हटा दे | असल में एक ऐसा राष्ट्रीय
उत्सव होना भी चाहिये की जिसमे सभी लोग छोटे-बड़े और रजा-रंक का भेद भूले बिना किसी
भी रूकावट के शामिल होकर परस्पर प्रेमालिंगन कर सके | यही होली का एतिहासिक,
पारमार्थिक और राष्ट्रीय तत्व मालूम होता
है | शेष अगले ब्लॉग में ......
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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