Friday 29 March 2013

हरिनाम का महत्व -१-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

चैत्र कृष्ण, द्वितीया, शुक्रवार, वि० स० २०६९

 

प्रभु श्रीचैतन्यदेव नीलांचल चले जा रहे है, प्रेम में प्रमत्त हैं, शरीर की सुध नहीं है, प्रेममदमें मतवाले हुए नाचते चले जा रहे है, भक्त-मण्डली साथ है | रास्ते में एक तरफ एक धोबी कपडे धो रहा है | प्रभु को अकस्मात चेत हो गया, वे धोबीकी और चले ! भक्तगण भी पीछे-पीछे जाने लगे | धोबी ने एक बार आँख घूमाकर उनकी और देखा फिर चुपचाप अपने कपडे धोने लगा | प्रभु एकदम उसके निकट चले गए | श्रीचैतन्यके मन का भाव भक्तगण नहीं समझ सके | धोबी भी सोचने लगा की क्या बात है ? इतने में ही श्रीचैतन्य ने धोबी से कहा ‘भाई धोबी एक बार हरि बोलो |’ धोबी ने सोचा, साधु भीख मांगने आये है | उसने ‘हरि बोलो’ प्रभुकी इस आज्ञापर कुछ भी ख्याल न करके सरलता से कहा ‘महाराज ! मैं बहुत ही गरीब आदमी हूँ | मैं कुछ भी भीख नहीं दे सकता |’

प्रभु ने कहा ‘धोबी ! तुमको कुछ भी भीख नहीं देनी पड़ेगी | सर एक बार ‘हरि बोलो !’ धोबी ने मन में सोचा, साधुओं का जरुर ही इसमें कोई मतलब है, नहीं तो मुझे ‘हरि’ बोलने को क्यों कहते ? इसलिए हरि न बोलना ही ठीक है | मैं हरिबोला बन जाऊंगा तो मेरे बाल-बच्चे अन्न बिना मर जायेंगे |

प्रभु ने कहा ‘भाई ! तुझे हमलोगों को कुछ देना नहीं पड़ेगा, सिर्फ एक बार मुहँ से हरि बोलो | हरिनाम लेने में न तो कोई खर्च लगता है और न किसी काम में बाधा आती है | फिर क्यों नहीं बोलते, एक बार हरि बोलो भाई |’ शेष अगले ब्लॉग में ....

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!
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Ram