।। श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
आषाढ़ कृष्ण,
अष्टमी, रविवार, वि० स०
२०७०
विचार
गत ब्लॉग से आगे ...शास्त्रो का अनुगमन करनेवाली शुद्ध बुद्धि से अपने सम्बंध में सदा सर्वदा विचार करना चाहिये । विचार से तीक्ष्ण होकर बुद्धि परमात्मा का अनुभव करती है। इस संसार रुपी दीर्घ रोग का सबसे श्रेस्ठ औषध विचार ही है । विचार से विपत्तियोंका मूल अज्ञान ही नष्ट हो जाता है । यह संसार मृत्यु, संकट और भ्रम से भरपूर है, इसपर विजय प्राप्त करने का उपाय एकमात्र विचार है। बुरे को छोड़कर, अच्छे को ग्रहण, पाप को छोड़ कर पुण्य का अनुष्ठान विचार के द्वारा ही होता है। विचार के द्वारा ही बल, बुद्धि, सामर्थ्य, स्फूर्ति और प्रयत्न सफल होते है। राज्य, संपत्ति और मोक्ष भी विचार से प्राप्त होता है । विचारवान पुरुष विपत्ति में घबराते नहीं,संपत्ति में फूल नहीं उठाते । विचारहीन के लिये संपत्ति भी विपत्ति बन जाती है । संसार के सारे दुःख अविवेक के कारण है । विवेक धधकती हुई अंतर्ज्वाला को भी शीतल बना देता है । विचार ही दिव्य दृष्टि है, इसी से परमात्मा का साक्षात्कार और परमानन्द की अनुभूति होती है । यह संसार क्या है? मैं कौन हूँ? इससे मेरा क्या सम्बन्ध है? यह विचार करते ही संसार से सम्बन्ध छूटकर परमात्मा का साक्षात्कार होने लगता है । इसलिये शस्त्रानुगामिनी शान्त, शुद्ध, बुधि, से विचार करते रहना चाहिए । (योगवसिष्ठ)
शेष अगले ब्लॉग में.....
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तकसे, कोड ८२०, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश, भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!