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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
कार्तिक कृष्ण, द्वादशी, गुरूवार,
वि० स० २०७०
प्रार्थना
हे नाथ ! तुम्हीं सबके स्वामी तुम
ही सबके रखवारे हो ।
तुम ही सब जग में व्याप रहे, विभु ! रूप अनेको धारे हो ।।
तुम ही नभ जल थल अग्नि तुम्ही, तुम
सूरज चाँद सितारे हो ।
यह सभी चराचर है तुममे, तुम ही
सबके ध्रुव-तारे हो ।।
हम महामूढ़
अज्ञानी जन, प्रभु ! भवसागर में पूर रहे ।
नहीं नेक तुम्हारी भक्ति करे, मन मलिन विषय में चूर
रहे ।।
सत्संगति में नहि जायँ कभी,
खल-संगति में भरपूर रहे ।
सहते दारुण दुःख दिवस रैन, हम सच्चे सुख से दूर
रहे ।।
तुम दीनबन्धु जगपावन हो, हम दीन पतित अति भारी है ।
है नहीं जगत में ठौर कही, हम आये शरण तुम्हारी है ।।
हम पड़े तुम्हारे है दरपर, तुम पर
तन मन धन वारी है ।
अब कष्ट हरो हरी, हे हमरे हम
निंदित निपट दुखारी है ।।
इस टूटी फूटी नैय्या को, भवसागर से खेना होगा ।
फिर निज हाथो से नाथ ! उठाकर, पास बिठा लेना होगा ।।
हा अशरण-शरण-अनाथ-नाथ, अब तो आश्रय
देना होगा ।
हमको निज चरणों का निश्चित, नित
दास बना लेना होगा ।।
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, पद-रत्नाकर पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!