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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
कार्तिक कृष्ण, तृतीया, सोमवार, वि० स० २०७०
ब्रह्मचारी के धर्म
गत ब्लॉग से आगे .. पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए स्वयं कभी वीर्यपात न
करे और यदि असावधानतावश स्वप्नादी में कभी हो जाय तो जल में स्नान करके
प्राणायामपूर्वक गायत्री का जप करे । प्रात: काल और सांय: काल दोनों समय मौनपूर्वक
गायत्री का जप करते हुए पवित्रता और एकाग्रता के साथ अग्नि, सूर्य, आचार्य, गौ,
ब्राह्मण, गुरु, वृद्धजन और देवताओ की उपासना और संध्योपासना करे । आचार्य को
साक्षात् मेरा ही स्वरुप समझे, उसका कभी भी निरादर न करे और न कभी साधारण मनुष्य
समझकर उसकी किसी बात की उपेक्षा या अवेहलना ही करे; क्योकि गुरु सर्व देवमय होता
है ।
सांयकाल और प्रात:काल दोनों समय जो कुछ भिक्षा मिले अथवा और भी जो कुछ
प्राप्त हो, गुरु के आगे रख दे और फिर उनके आज्ञानुसार उसमे से लेकर संयमपूर्वक
उपभोग करे । आचार्य के जाने, लेटने, बैठने और ठहरने में सदा अति नम्रता के साथ हाथ
जोड़े हुए साथ ही रहे और अति नीच के समान सदा उसकी सेवा-शुश्रणा में लगा रहे । इस
प्रकार सब भोगों से दूर रह कर जब तक विद्या समाप्त न हो जाये, अखंडित ब्रह्मचर्य
का पालन करता हुआ गुरुकूल में रहे । यदि स्वर्गादी लोक अथवा जहाँ मूर्तिमान वेद
रहते है, उन ब्रह्मलोक में जाने की इच्छा हो तो नैस्ठीक ब्रह्मचर्य लेकर
याव्व्जीवन वेदाध्यन्न करने के लिए गुरु को अपना शरीर समर्पण कर दे । उस
ब्रह्म-वर्चस्वी निष्पाप बाल-ब्रह्मचारी को चाहिये की अग्नि, गुरु, आत्मा और समस्त
प्राणियों में अभिन्न भाव से मेरी उपासना करे ।.. शेष अगले ब्लॉग में ...
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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