Friday, 18 January 2013

तृष्णा -4-


|| श्री हरि: ||

आज की शुभ तिथि – पंचांग

पौष शुक्ल, सप्तमी, शुक्रवार, वि० स० २०६९



 तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णा: 


न्याय से धन कमाने और उसका सदुपयोग करने की मनाही नहीं है | परन्तु धन की तृष्णा से मतवाले होने ही आवश्यकता नहीं | इसलिए शास्त्रों में इसके लिए एक मर्यादा बतायी है; क्योंकि धन में बड़ी मादकता होती है, धन मद सबसे बड़ा मद होता है | यह मद जब मनुष्य पर चढ़ जाता है, तब उसे अन्धा बना देता है | वह अपने सामने जगत में किसी को भी बुद्धिमान नही समझता |
वे पुरुष धन्य है, जो धन होते हुए भी मदहीन और विनम्र है | परन्तु ऐसे मनुष्य संसार में बिरले ही होते है | धन की स्वाभाविक मादकता आये बिना प्राय: नहीं रहती | अत एव साधक पुरुष को चाहिये कि वे अजीविका के लिए उतना ही कार्य करे, जितने से उनकी गृहस्थी बड़ी सादगी के साथ साधारण रूप से ठीक चलती रहे |
 धन बटोर कर भोग भोगने या पुण्य कमाने की इच्छा रखकर धन के लिए तृष्णा न करे | इससे परमार्थ के साधन में बड़ा विघ्न होता हैं |

धन कमाना बुरी बात नहीं है | धन की तृष्णा ही बुरी है |

श्री मन्न नारायण नारायण नारायण.. श्री मन्न नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....

नित्यलीलालीन श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसाद पोद्धार,कल्याण अंक,वर्ष ८६,संख्या ३,पृष्ट-संख्या ५७६,गीताप्रेस, गोरखपुर
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Ram