Friday, 11 January 2013

भक्त के लक्षण -६-


आज की शुभ तिथि – पंचांग

पौष कृष्ण अमावस्या, शुक्रवार, वि० स० २०६९
फिर वह चाहे भी क्या है ? जगत का सारा ऐश्वर्य जिसके सामने एक कण भी नहीं है, वह सर्वलोकमहेश्वर श्याम-सुन्दर उसका प्रियतम स्वामी है, उसकी सेवा को छोड़ कर वह क्या चाहे | इसलिए ललित किशोरी जी ने गाया है –

अष्टसिद्धि नवनिधि हमारी मुट्ठी में हरदम रहती है |

नहीं जवाहिर सोना चाँदी त्रिभुवन की सम्पति चहतीं ||

भावें न दुनिया की बाते दिलवर की चर्चा सहती |

‘ललितकिशोरी’ पार लगावे माया की सरिता बहती ||

भक्त तो केवल अपने प्रियतम स्वामी की सेवा में ही रहना चाहता है, वह सेवा को छोड़कर मुक्ति भी नहीं ग्रहण करता | करे भी कैसे? भगवान के उस अनन्य सेवक के लिए माया का बंधन तो है ही नहीं, जिससे वह मुक्त होना चाहे | उसके तो केवल भगवत-सेवा का बन्धन है, भक्त इस प्यारे बन्धन से मुक्ति क्यों चाहेगा ? श्रीमद भागवत में भगवान कहते है –

‘मेरी सेवा को छोड़ कर मेरे भक्त सालोक्य, सास्टी, सामीप्य, सारुप्य, एकत्व – इन मुक्तियो को देने पर भी नहीं लेते है |’ (३|२९|१३)  

भक्त जानता है, मेरे प्रभु समस्त ब्रह्मांडो के एकमात्र स्वामी है, मुक्ति उनके चरणों की दासी है | वह कहता है –

अब तो बंध मोक्ष की इच्छा व्याकुल कभी न करती है |

मुखड़ा ही नित नव बंधन है मुक्ति चरणों से झरती है ||

मुक्ति दायिनी गंगाजी श्री भगवान् के चरणों का ही तो धोवन है |

भगवचर्चा,हनुमानप्रसाद पोद्दार,गीताप्रेस,गोरखपुर,कोड ८२०,पन्ना न० १९६
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Ram