आज की शुभ तिथि – पंचांग
पौष कृष्ण अमावस्या, शुक्रवार, वि०
स० २०६९
फिर
वह चाहे भी क्या है ? जगत का सारा ऐश्वर्य जिसके सामने एक कण भी नहीं है, वह
सर्वलोकमहेश्वर श्याम-सुन्दर उसका प्रियतम स्वामी है, उसकी सेवा को छोड़ कर वह क्या
चाहे | इसलिए ललित किशोरी जी ने गाया है –
अष्टसिद्धि
नवनिधि हमारी मुट्ठी में हरदम रहती है |
नहीं
जवाहिर सोना चाँदी त्रिभुवन की सम्पति चहतीं ||
भावें
न दुनिया की बाते दिलवर की चर्चा सहती |
‘ललितकिशोरी’
पार लगावे माया की सरिता बहती ||
भक्त
तो केवल अपने प्रियतम स्वामी की सेवा में ही रहना चाहता है, वह सेवा को छोड़कर
मुक्ति भी नहीं ग्रहण करता | करे भी कैसे? भगवान के उस अनन्य सेवक के लिए माया का
बंधन तो है ही नहीं, जिससे वह मुक्त होना चाहे | उसके तो केवल भगवत-सेवा का बन्धन
है, भक्त इस प्यारे बन्धन से मुक्ति क्यों चाहेगा ? श्रीमद भागवत में भगवान कहते
है –
‘मेरी
सेवा को छोड़ कर मेरे भक्त सालोक्य, सास्टी, सामीप्य, सारुप्य, एकत्व – इन मुक्तियो
को देने पर भी नहीं लेते है |’ (३|२९|१३)
भक्त
जानता है, मेरे प्रभु समस्त ब्रह्मांडो के एकमात्र स्वामी है, मुक्ति उनके चरणों
की दासी है | वह कहता है –
अब
तो बंध मोक्ष की इच्छा व्याकुल कभी न करती है |
मुखड़ा
ही नित नव बंधन है मुक्ति चरणों से झरती है ||
मुक्ति
दायिनी गंगाजी श्री भगवान् के चरणों का ही तो धोवन है |
भगवचर्चा,हनुमानप्रसाद पोद्दार,गीताप्रेस,गोरखपुर,कोड
८२०,पन्ना न० १९६
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