आज की शुभ तिथि – पंचांग
पौष कृष्ण ११,मंगलवार, वि० स० २०६९
३.
भक्त का किसी विषय
में ममत्व नहीं होता | उसका सारा ममत्व एकमात्र अपने प्राण आराध्य भगवान में हो
जाता है | फिर जगत के पदार्थो में कहीं उसका ममत्व रहता है तो उसको भगवान के पूजन
की सामग्री या भगवान की वस्तु समझकर ही रहता है | अपने या अपने भोगो के सम्बन्ध
में नहीं | रामचरितमानस में भगवान के कहा है –
जननी जनक बंधू सुत दारा | तनु धनु भवन सुहृद परिवारा |
सब के ममता ताग बटोरी | मम पद मनही बाध बरी डोरी |
अस सज्जन मम उर बस कैसे | लोभी
ह्रदय बसई धनु जैसे |जननी जनक बंधू सुत दारा | तनु धनु भवन सुहृद परिवारा |
सब के ममता ताग बटोरी | मम पद मनही बाध बरी डोरी |
संसार के दुखो का एक प्रधान कारण ममता है, न
मालूम कितने लोग रोज मरते है और कितने लोगो का धन का नित्य नाश होता है, पर हम
किसी के लिए नहीं रोते ! लेकिन यदि कोई हमारे घर का आदमी मर जाए तो या कुछ धन नष्ट
हो जाये तो शोक होता है | इसका कारण ममता ही है | मान लीजिये हमारा एक मकान है ,
अगर कोई आदमी उसकी एक ईट निकल दे तो हमे बहुत बुरा मालूम होता है | हमने उस मकान
को बेच दिया और उसकी कीमत का चेक ले लिया | अब उस मकान की एक-एक ईट से ममता निकल
कर हमारी जेब में रखे हुए कागज क टुकड़े में आ गयी | अब चाहे मकान में आग लग जाये,
हमे कोई चिन्ता नहीं | चिंता है अब कागज के चेक की | बैंक में गए, चेक के रूपये
हमारे खाते में जमा हो गए | अब भले ही बैंक का क्लर्क उस कागज के तुकड़े को फाड़
डाले, हमे कोई चिंता नहीं | अब उस बैंक की चिंता है कि कहीं वह फ़ेल न हो जाए;
क्योंकि उसमे हमारे रूपये जमा है | इस प्रकार जहाँ ममता है वही शोक है | यदि हमारी
सारी ममता भगवान में अर्पित हो जाये, फिर शोक का जरा भी कारण न रहे | भक्त तो
सर्वस्व अपने प्रभु के अर्पण कर उसको अपना बना लेता है और आप उसका बन जाता है |
उसमे कहीं दूसरे के लिए ममता रहती ही नहीं, इसलिये शोक रहित होकर सर्वदा आनन्द में
मग्न रहता है |
भगवचर्चा,हनुमानप्रसाद
पोद्दार,गीताप्रेस,गोरखपुर,कोड ८२०,पन्नान० १९४
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